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ढाल-दूसरी "भाषा समिति" की
_ "स्वामी सीमंधर वीनति सांभलो माहरी देव" ॥ एदेशी ॥ साधुजी समिति बीजी आदरो, ववन निर्दोष प्रकाश रे ।'
गुप्ति उत्सर्ग नो समिति ते, मार्ग अपवाद सुविलास रेसा॥ सन्दार्थ...बीजी दूसरी । निर्दोष =दोष रहित । प्रकाश =बोलो । गुप्ति वचन गुप्ति । सुविलास =अच्छा।
भावार्थ--साधुओ ! दूसरी भाषा समिति धारण करो। निर्दोष वचन बोलो । उत्सर्ग मार्ग में जो वचन गुप्ति कही है, उसीका अपवाद यह भाषा समिति है ॥१॥
भावना बीय महाव्रत तणी, जिनमणी सत्यता मूल रे । भाव अहिंसकता वधे, सर्व संवर अनुकूल रे ॥ साधु० ॥२॥ शब्दार्थ...बोय =दूसरे । तणी =की। भणी=कही। बर्ष =बढे ।
भावार्थ-यह भाषा समिति दूसरे महाव्रत की भावना है । जिनेश्वरोंने उसे सच्चाई का मूल बतलाया है । इससे सर्व संवरको प्राप्त करवाने वाली अहिंसकता बढ़ती है, ऐसा श्री जिनेश्वर देव ने कहा है ! अर्थात् मुनि सत्य वचन ही बोले और वह भी अहिंसा एवं संवरको बढ़ाने वाला ही हो ॥२॥ मौनधारी मुनि नवी वदे, वचन जे आश्व गेह रे।
आचरण ज्ञान ने ध्यान नो, साधक उपदिशे तेह रे ॥३॥सा. शब्दार्थ...नवी नहीं । वदे =बोले। आश्रवगेह =कर्मों का घर । उपदिशे= बतलाये । तेह =वह।
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