Book Title: Arhat Vachan 2003 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 14
________________ (झाबुआ) की कांस्य प्रतिमा का भावाचित्रण भी उसी प्रकार का है। भावाभिव्यक्ति के दृष्टिकोण से विचार करें तो मातृभाव व ज्ञान गरिमा से पूर्णता का भाव इन शिल्पों से स्पष्ट है। इन शिल्पों के निर्माताओं का परिचय विशेष रूप से उपलब्ध नहीं है। लासएंजिल्स की सरस्वती मूर्ति के शिल्पी जगदेव थे। वे गुजरात के प्रसिद्ध शिल्पकर्मी थे व व्यावसायिक रूप में काम करते थे। भारत में शिल्पियों व कलाकारों की पारिवारिक परंपरा होती है। राजस्थान में ऐसे ही व्यावसायिक शिल्प - कर्मियों का समूह 'माथेन' रूप से जाना जाता था।1० धार वाग्देवी के सूत्रधार का नाम साहिरसुत मनथलेन (मणथलेन) है। तो कहीं यह शिल्पी माथेन परंपरा से तो नहीं है। 11 वीं-12 वीं - 13 वीं शताब्दी में जगदेव व मनथलेन परिवारों को सरस्वती की मूर्तियों के निर्माण में महारथ हासिल थी। हो सकता है महाराजा भोज ने इसी कारण मनथलेन को अपने विद्यापीठ के लिए वाग्देवी की मूर्ति निर्माण का कार्य सौंपा हो। मध्यभारत की सरस्वती मूर्तियों के अध्ययन करने वाले यह जानते हैं कि 11 वीं व 12 वीं शताब्दि में सरस्वती की मूर्तियाँ विभिन्न माध्यमों में गढ़ी गई - यह स्वयम् प्रमाण है कि जैन सरस्वती जनमानस में समाई हुई थी। वागदेवी/ सरस्वती की मूर्तियों की जैन परंपरा के अनुकूल निर्माण में एक महत्वपूर्ण बात है कि उस पर तीर्थंकर का अंकन अवश्य होता है और ब्रिटिश म्यूजियम में रखी इस मूर्ति पर तीर्थंकर का अंकन है - अत: हम विश्वासपूर्वक कह सकते हैं कि यह परंपरा की मर्ति है। भोजराज स्वयं जैन धर्म के पोषक थे अत: उनके विद्यापीठ में जैन परंपरा की वाग्देवी का प्रतिष्ठित होना स्वाभाविक है। इतिहास, शिल्पशास्त्रीय अध्ययन तथा साहित्यिक संदर्भ सभी ब्रिटिश म्यूजियम में रखी मूर्ति को जैन सरस्वती मूर्ति सिद्ध करते हैं। बनारसीदासजी ने 17 वीं शताब्दी में वाग्देवी के वंदन में लिखा था - 'अकोपा अमाना अदम्भा अलोभा श्रुतज्ञान- रूपी मतिज्ञान शोभा। महापावनी भावना भव्यमानी, नमो देवी वागीश्वरी जैन वानी॥ अशोका मुदेका विवेका विधानी, जगज्जन्तुमित्रा, विचित्रा वसानी। समस्तावलोका निरस्ता निदानी. नमो देवि वागीश्वरी जैन वानी।।' यदि भोजराज की आत्मा और मस्तिष्क का कोई ग्राफ मिल सके तो वह भी यही बताएगा कि उपरोक्त भावों के साथ ही वे वाग्देवी की मूर्ति का वंदन करते थे। सन्दर्भ - 1. M.D. Khare - Malwa through the ages - page 7- Para III 2. वही - Page 5, Para lll 3. वि.श्री. वाकणकर - अभिनन्दन ग्रंथ, पृ. 55, पैरा - 1 4. वही, पृ. 56, पैरा -1 5. वही, पृ. 56, पैरा -2 6. डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन - प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरूष और महिलाएँ, पृ. 251, पैरा-1 7. वि. श्री वाकणकर, अभिनन्दन ग्रंथ, पृ. 57, पैरा - 1 8. वही, अभिनन्दन ग्रंथ, पृ. 58, पैरा -1 9. Kiriti Mankodi-Malwa through the ages, Page 118, Para-1 10. Pratipaladitya Pal-Jain Art from India, Page 23-24, Para IV & 1 संशोधनोपरांत प्राप्त - 28.07.03 12 अर्हत् वचन, 15 (3), 2003 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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