Book Title: Arhat Vachan 2003 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 71
________________ क हेन्दी वैज्ञानिक साहित्य का व्यापक रूप से सर्वेक्षण एवं मूल्यांकन किया जाये यह मानवता 5 लिये तो कल्याणकारी होगा ही जैनत्व की गरिमा में भी अभिवृद्धि करेगा। इसके लिए प्रथम चरण में पांडुलिपियों का सूचीकरण एवं अगले चरण में वैज्ञानिक विषयों की पांडुलिपियों को छाँटकर उनका संरक्षण, अनुवाद करना होगा। संदर्भ स्थल - पं. गजाधरलाल न्यायतीर्थ प्रकाशक कुन्दकुन्द 403, पृ. 157 2. राजस्थान के जैन शास्त्र भंडारों की ग्रंथ सूची, भाग 2, कस्तूरचंद कासलीवाल, श्री दिग. जैन अतिशय क्षेत्र, महावीरजी, 1954 1. पद्मनंदि पंचविंशतिका, आ. पद्मनंदि, हिन्दी टीका दिग. जैन स्वाध्याय मंडल, नागपुर 1996 गा. 3. Kastoorchand Kasliwal, Jain Grantha Bhandars in Rajasthan, Vol.-1, Shri Dig. Jain Atishaya Kshetra Shri-Mahavirji 1967. 4. श्रावक प्रतिक्रमण पाठ (संस्कृत) 5. गोम्मटसार जीवकांड, पूर्वपीठिका, पृ. 5 6. अनुपम जैन, जैन गणितीय साहित्य, अर्हत् वचन ( इन्दौर), 1 (1) सित. 881 7. परियम्यसुत्तं (परिकर्मसूत्र) वर्तमान में उपलब्ध नहीं हैं। 8. सिद्धपद्धति टीका, वर्तमान में उपलब्ध नहीं है। 9. वृहद्धारा परिकर्म, वर्तमान में उपलब्ध नहीं है। 10. विस्तृत विवरण हेतु देखें, सन्दर्भ- 6. 11. अनुपम जैन, हेमराज व्यक्तित्व एवं कृतित्व, अर्हत् वचन ( इन्दौर), 1 ( 11 ), 88, पृ. 53-641 12. मूकमाटी, आचार्य श्री विद्यासागर जी भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, 1998, पृ. 1661 13. ये सभी ग्रन्थ वीर ज्ञानोदय ग्रंथमाला, दि. जैन त्रिलोक शोध संस्थान, हस्तिनापुर 250404 मेरठ से प्रकाशित है। 14. अनगार धर्मामृत, पं. आशाधर, संपा. अनु. पं. कैलाशचंद शास्त्री, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली 1977, 7/9, पृ. 4951 15. आयुर्वेद के विकास में जैनाचायों का योगदान, डॉ. शकुन्तला जैन, Ph.D. शोध प्रबन्ध विक्रम वि.वि. उज्जैन, 1991 18. उग्रादित्य, कल्याणकारक, सं. पं. व्ही. पी. शास्त्री, सोलापुर, 1940 1 - 17. सन्दर्भ 15, पृ. 8. 18. वही 19. नेमिचंद्र शास्त्री, जैन ज्योतिष साहित्य, भारतीय संस्कृति के विकास में जैनाचार्यों का अवदान, भाग - 2, अ.भा. दि. जैन विद्वत् परिषद, सागर, 1983 1 20. ठक्कर फेरू, रत्नपरीक्षादि सप्तग्रंथसंग्रह, जोधपुर, 19611 20. लक्ष्मीचंद्र जैन, आ. नेमिचन्द्र सिद्धांतचक्रवर्ती की खगोल विद्या एवं गणित संबंधी मान्यताएं आधुनिक संदर्भ में, अर्हत् वचन 1 (1), पृ. 80 सित. 1988 1 संशोधनोपरान्त प्राप्त - Jain Education International - 1.7.03 अर्हत् वचन, 15 (3), 2003 For Private & Personal Use Only 69 www.jainelibrary.org

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