Book Title: Arhat Vachan 2003 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 88
________________ टिप्पणी-4 अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर प्रकाश की सजीवता पर विचार - अनिलकुमार जैन * जैन दर्शनानुसार प्रकाश सजीव है या निर्जीव, यह एक विचारणीय मुददा है। इस विषय पर विभिन्न जैन संतों की अलग-अलग राय है। अभी किसी एक पक्ष में आम राय नहीं बन पायी है। हम यहाँ इसी विषय कर अपने विचार प्रस्तुत कर रहे हैं। जैनाचार्यों ने स्थावर जीव पाँच प्रकार के बताये हैं - पृथ्वी, अप, तेज, वायु और वनस्पति। यहाँ तेज यानि अग्नि को भी एक इन्द्रिय जीव बनाया गया है। यहाँ एक दिलचस्प बात यह है कि अग्नि को तो जीव कहा है, लेकिन प्रकाश, ध्वनि, गर्मी आदि को जीव नहीं कहा गया है। प्रकाश, ध्वनि, गर्मी आदि ऊर्जा की विभिन्न अवस्थाएँ हैं। जिस समय आचार्यों ने अग्निकायिक जीवों की चर्चा की थी, उस समय प्रकाश, गर्मी और ध्वनि आदि भी मौजूद थे। यदि ये भी जीव होते तो इनकी चर्चा भी स्थावर जीवों में की होती तथा इस स्थिति में स्थावर पाँच प्रकार के न होकर इससे अधिक होते। इससे सिद्ध होता है कि प्रकाश, गर्मी, ध्वनि आदि जीव नहीं हैं। जैसा कि ऊपर कहा गया है प्रकाश, गर्मी, ध्वनि आदि ऊर्जा की विभिन्न अवस्थाएँ हैं। अग्नि से गर्मी और प्रकाश दोनों उत्पन्न होते हैं। अग्नि सजीव है अत: प्रकाश और गर्मी भी सजीव होंगे, ऐसा नहीं कहा जा सकता है। जैसे मनुष्य ध्वनि निकालता है, मनुष्य सजीव है जबकि ध्वनि पुद्गल की पर्याय (विकार रूप) है। अत: यह तो माना जा सकता है कि प्रकाश और गर्मी अग्निकायिक जीव के निमित्त से भी पैदा होते हैं, लेकिन प्रकाश और गर्मी भी सजीव होते हैं ऐसा मानना सही नहीं है। आगम में दो प्रकार के जीवों का वर्णन मिलता है - उद्योत और आताप। उद्योत जाति के जीव वे हैं जो अपने शरीर से शीतल प्रकाश निकालते हैं जैसे जुगन्। आताप जाति के जीव वे होते हैं जो प्रकाश के साथ - साथ गर्मी भी देते हैं जैसे अग्निकायिक जीव। हम यह मान सकते हैं कि चन्द्रमा से हमें जो शीतल प्रकाश प्राप्त होता है वह वहाँ पर स्थित उद्योत जाति के जीवों के कारण है। तथा सूर्य से जो प्रकाश प्राप्त होता है वह वहाँ पर स्थित आताप जाति के जीवों के कारण से है। जुगनू सजीव है, उससे मिलने वाला प्रकाश भी सजीव होगा, यह मानना सही नहीं है। एक दिलचस्प बात यह और है कि अग्नि को पैदा करने के लिये तीन की आवश्यकता होती है - ईंधन, आक्सीजन और गर्मी या ताप (minimum ignition temperature)| यदि इनमें से एक भी कम होगा तो अग्नि पैदा नहीं होगी। अग्नि पैदा करने के लिये न्यूनतम ignition ताप भी चाहिये और बाद में फिर अग्नि भी और अधिक गर्मी पैदा करती है। इस प्रकार अजीव के निमित्त से जीव (के उत्पन्न होने योग्य योनि) तथा जीव के निमित्त से अजीव (पर्याय) की उत्पत्ति हो सकती है। जिस प्रकार प्रकाश, गर्मी और ध्वनि अजीव हैं तथा ऊर्जा की विभिन्न अवस्थाएँ हैं, उसी प्रकार विद्युत भी ऊर्जा की एक अवस्था है और वह भी अजीव है। एक ऊर्जा को दूसरी ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है। ध्वनि से विद्युत और विद्युत से ध्वनि, तथा प्रकाश से विद्युत और विद्युत से प्रकाश आदि पैदा किया जा सकता है। हमारी दृष्टि में, ऊर्जा की ये सभी अवस्थाएँ स्वयं में जीव नहीं हैं। यदि ये जीव होतीं तो आचार्यों ने इन्हें भी स्थावरों में गिनाया होता। हाँ. यह अवश्य है कि इनके उत्पादन में कुछ सूक्ष्म जीवों की विरादना होती है/हो सकती है। इनका अधिक प्रयोग प्रदूषण फैला सकता है। अत: जितना हो सके उतना हमें ऊर्जा का संरक्षण करना चाहिये क्योंकि इसका सीधा सम्बन्ध पर्यावरण से है। * बी- 26, सूर्यनारायण सोसायटी, बिसत पैट्रोल पम्प के सामने, साबरमती, अहमदाबाद - 380005 प्राप्त - 15.12.2002 86 अर्हत् वचन, 15 (3), 2003 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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