Book Title: Arhat Vachan 2003 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 112
________________ ब्राह्मी लिपि पर अधिकार पूर्ण पकड़ के कारण अपनी कृति 'श्री खारवेल' पुस्तक द्वारा न केवल जैन इतिहास वरन् भारतीय इतिहास के एक ऐसे स्वर्णिम अध्याय को अनावृत्त किया है जो भारतीय नरेशों के चरित्र, ज्ञान और जन कार्यों में गहरी रूचि को उजागर करता है। उदयगिरि (उड़ीसा) की 'हाथीगुंफा' की शिला पर पहली शताब्दी ई. पूर्व का ब्राह्मी लिपि में अंकित अभिलेख महामेघवाहन वंश के ज्योतिपुंज खारवेल के व्यक्तित्व व चरित्र पर प्रकाश डालता है व जैन परंपराओं को महावीर कलिंग और मगध से जोड़ता है। इस खुदे हुए आलेख का जैसे-जैसे अधिक सही वाचन व विवेचन होने लगा है - जैन इतिहास पर छाई धुंध साफ होने लगी है। इस कार्य में श्री अग्रवाल का योगदान ऐतिहासिक महत्व का है। उन्होंने अपने ब्राह्मी लिपि के ज्ञान का सही उपयोग किया है 7 व जनहित में उसे प्रसारित किया है। श्री सदानंद अग्रवाल से पहले भी उदयगिरि की गुफाओं में अंकित इन खुदे हुए आलेखों को कई विद्वानों ने पढ़ा और उन पर खोज की थी। सर्वप्रथम श्री ए. स्टर्लिंग ने इसे सन् 1820 ई. में पढ़ा और इसका प्रकाशन किया। बाद में भी कई विद्वानों ने इस पर अध्ययन किया किन्तु कई विवादों ने जन्म ले लिया। श्री सदानंद अग्रवाल ने पूर्व के अध्ययन का सम्यक विश्लेषण कर इस अभिलेख का पुन: वाचन कर उसे लिखा और 1993 में "श्री खारवेल" पुस्तक में प्रकाशित किया - जिसे विद्वानों ने सराहा और इस हेतु उन्हें अभिनन्दित किया। यह पुस्तक अब तक उड़िया, हिन्दी व अंग्रेजी में प्रकाशित हो चुकी है। यह खारवेल के चरित्र व ब्राह्मी लिपि पर प्रामाणिक दस्तावेज है। कटक जैन समाज द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक वहाँ के जैन समाज की जागरूकता का भी प्रमाण है। भारत के सब जैन समाज यदि कटक जैन समाज से प्रेरणा लेकर जैन इतिहास के संरक्षण में इसी प्रकार भागीदारी करने लगें तो जैन परंपराएँ तो अधिक पारदर्शी रूप में सामने आने ही लगेगी किन्तु भारतीय इतिहास भी पूर्वाग्रह पूर्ण इतिहास होने के लांछन से मुक्त हो जाएगा। ज्ञानोदय पुरस्कार मूल्यांकन समिति ने इसी भावना से श्री सदानंद अग्रवाल की कृति 'श्री खारवेल' का ज्ञानोदय पुरस्कार - 2001 हेतु चयन किया है। संपर्क : श्री सदानंद अग्रवाल, मेंडा (जिला सुवर्णपुर, उड़ीसा) पिन - 767063 * निदेशक - ज्ञानोदय फाउन्डेशन, 9/2, स्नेहलतागंज, इन्दौर-452003 A Fut-41104 :27 ३. 24TERE tasviral . ....- * .11 defithila TH (1... I AM तीर्थंकर जन्मभूमियों का विकास एवं संरक्षण प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिये। - गणिनी आर्यिका ज्ञानमती 110 Jain Education International अर्हत् वचन, 15 (3), 2003 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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