Book Title: Arhat Vachan 2003 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 141
________________ अर्हत् वचन का 15 (12) अंक मिला परिश्रम साध्य कार्य किया है। विज्ञान और गणित के लोग व्यवस्थित कार्य करना जानते हैं। ऐसी सामग्री को उपलब्ध कराकर आपने जैन गणित की बुनियाद को स्थिर कर दिया है। थोड़ी और मेहनत से इसे अध्ययन का विषय बनाया जा सकता है अगर Text Book की तरह विषयों का चयन कर पुनः अलग से प्रकाशित किया जाये। 24.07.03 अर्हत् वचन का 15 (12) अंक देखा कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ की गतिविधियों के सर्वांगीण विवरण के साथ ही अर्हत् वचन में प्रकाशित लेखों, लेखकों का विवरण विषय सामग्री का वर्गीकरण आदि सभी अनुसंधान एवं पद्धतिपूर्ण कार्य करने की प्रवृत्ति के परिचायक हैं। आपके सुयोग्य निर्देशन में अर्हत् वचन के अनुरूप अर्थात् वीतराग भाव से संस्था प्रगति करे और अपने लक्ष्य / उद्देश्यों को प्राप्त करे, यही कामना है। 24.07.03 पृष्ठ 78 पर प्रकाशित लेखकों के लिये मार्गदर्शन हेतु अच्छा प्रयास है। हेतु आपके सद्प्रयास प्रशंसनीय हैं। अब कोई भी लेखक आपके अनुमोदन पर मात्र लिखेगा और लिखना चाहिये । ■ प्रो. महावीर राज गेलडा संस्थापक कुलपति जैन विश्व भारती संस्थान (मानित वि. वि.) जयपुर 302004 - 24.07.03 24.07.03 Indian Agricultural Research Institute, New Delhi - 110012 अर्हतु वचन 15 (12) मिला। करीब 45 साल से नियमित आता है। मैं स्वयं पढ़ता हूँ। अर्हत् वचन की सराहना करने को शब्द नहीं हैं। जैन धर्म के सूक्ष्मतम ज्ञान से भरपूर है। प्रकाशित सामग्री अति सुन्दर, ज्ञानवर्द्धक कहने को शब्द नहीं हैं बहुत बार लगने लगता है कि इन्जीनियर बनने के बजाय इस संशोधन में रस लेना चाहिये था। आपसे मिलने की इच्छा भी है मौका मिलते ही आपसे मुलाकात करेगा। ■ प्रवीण एम. शाह, बी.ई., वापी (गुजरात) Kindly accept hearty congratulations for the excellent cumulative index c Arhat Vacana. Kindly keep a ready stock of reprints of important articles s that people can buy on demand. You may be aware that Jainism is discusser threadbare in yahoogroups like Jainlist and Jainfriends. You may include the content page of each issue as and when published in these yahoogroups. Le me once again congratulate you and your entire team for the exceller! margaprabhavana. My pranam to Vayovraddha Shriman Kasliwal Saheb. 26.07.03 अर्हत् वचन, 15 (3), 2003 - पत्रिका की गुणवत्ता की रक्षा अर्हत् वचन के लिये ही Jain Education International ■ डॉ. राजेन्द्रकुमार बंसल अमलाई - 484117 अर्हत् वचन का अंक 15 (12) जनवरी जून 2003 मिला यह अंक निश्चय ही शोधार्थियों के लिये मार्गदर्शक बनेगा क्योंकि आपने सभी लेख एवं लेखकों के पते एक साथ दिये हैं। यह अच्छा प्रयास है। पत्रिका के स्तरीय स्वरूप को कायम रखकर दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति करें, यही कामना है। For Private & Personal Use Only Dr. C. Devakumar Principal Scientist, ■ सुरेश जैन मारोश वरिष्ठ उद्यान अधिकारी, शिवपुरी 139 www.jainelibrary.org

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