Book Title: Arhat Vachan 2003 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 110
________________ रहने के पश्चात पहचाने जाने लगे। अशोक के परिवार का हंता रूप हटकर मानवीय रूप सामने आया। जैन साहित्य में कलिंग नरेश महाराज खारवेल का कहीं नामोनिशान नहीं पाया जाता था किन्तु हाथी गुम्फा ( उदयगिरी) के लेख (ई.पू. दूसरी सदी) के मिलने के पश्चात इस परम्परागत जैन वंश का पता चला। चन्द्रगुप्त, भद्रबाहु और चाणक्य का आपसी लगाव जैन आधारित मौर्य साम्राज्य की शक्ति थी, ऐसे अनेकों उदाहरण हमारे सामने आये हैं किन्तु जैनों का यह सच कि जैन धर्म अनंत काल से चला आ रहा है, इसके प्रमाण अभी एकत्रित होना शेष हैं। अभी भी कई कड़ियाँ टूटी हुई हैं, इन्हें प्रामाणिक रूप से जोड़ना आवश्यक है। इसकी पूर्ति हुए बिना बहुत से जैन कथानक संदेह के दायरे में बने रहेंगे। भगवान महावीर का जन्मस्थान कुंडलपुर से हटकर वैशाली चला जायेगा। ऐसे अनेकों प्रकरण हैं जो हमारे गौरव पर आघात कर रहे हैं। वे यह मांग कर रहे हैं कि हम हमारे इतिहास की लुप्त परम्पराओं को ढूंढें। इसी विचार से ज्ञानोदय फाउन्डेशन की स्थापना की गई और कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ के नेतृत्व में इतिहास के खोजियों को सम्मानित करने की परम्परा प्रारम्भ हुई। 'ज्ञानोदय पुरस्कार' का आयोजन इसका एक अंग है। स्वाध्यायी, शिक्षक और विद्यार्थी सबका हार्दिक स्वागत है, इस योजना में भाग लेने के लिये साथ ही अन्य मौलिक सुझावों को देने के लिये । ज्ञानोदय पुरस्कार समर्पण समारोह 108 O Jain Education International दय काउन्ड होलज्य दज्ञान परमय 106 अन प्रदेश के प्रतिष्ठित होलकर स्वशासी विज्ञान महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. नरेन्द्र धाकड़ के मुख्य आतिथ्य तथा कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ के अध्यक्ष श्री देवकुमारसिंह कासलीवाल की अध्यक्षता में ऋषभदेव पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव, सुदामानगर- इन्दौर के भव्य मंच पर आचार्य श्री अभिनन्दनसागरजी महाराज के मंगल सान्निध्य में दिनांक 3 मई 2003 को रात्रि 8.00 बजे ज्ञानोदय पुरस्कार समर्पण समारोह सम्पन्न हुआ । For Private & Personal Use Only दौर 22 अर्हत् वचन, 15 (3), 2003 www.jainelibrary.org

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