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55 x 35x25 से.मी. आकार की प्रतिमा लगभग 13 वीं शती ई. की है। जैन प्रतिमा वितान - यह प्रतिमा हनुमान मन्दिर के पास पीपल के वृक्ष के नीचे रखी है। जैन प्रतिमा वितान है। जिसमें त्रिछत्र, दुन्दुभिक अंकित हैं। दोनों ओर पदमासन की ध्यानस्थ मुद्रा में दो - दो जिन प्रतिमा अंकित हैं जो मुकुट, कुण्डल, आदि आभूषणों से अलंकृत हैं। बैसाल्ट पत्थर पर निर्मित 51 x 42 x 27 से.मी. आकार की यह प्रतिमा लगभग 13 वीं शती ई. की प्रतीत होती है। जैन प्रतिमा वितान - यह प्रतिमा हनुमान मन्दिर के सामने रखी है। जैन प्रतिमा का वितान त्रिछत्र, दुन्दुभिक अंकित हैं। दायें ओर गजारोही अभिषेक करते हुए प्रदर्शित हैं। दुन्दुभिक व अश्वारोही केश, कुण्डल, हार व बलय आदि से अलंकृत हैं। बैसाल्ट पत्थर पर निर्मित 51 x 42 x 27 से.मी. आकार की यह प्रतिमा लगभग 13 वीं शती ई. की प्रतीत होती है। गोमुख यक्ष - यह प्रतिमा हनुमान मन्दिर के सामने रखी है। प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ के शासन यक्ष गोमुख बैठे हुए हैं। गोमुख की बायीं भुजा अभय मुद्रा में बायीं भुजा के मोदक जैसी गोल वस्तु है। गोमुखी यक्ष करण्ड मुकुट, हार, यज्ञापवीत, मेखला व नूपर धारण किये हैं। बैसाल्ट पत्थर पर निर्मित 29 x 46 x 23 से.मी. आकार की यह प्रतिमा लगभग 13 वीं शती ई. की प्रतीत होती है।
उपरोक्त प्रतिमाओं के विवरण से स्पष्ट होता है कि यद्यपि से प्रतिमा कम संख्या में हैं तथापि परमार कालीन क्षेत्रीय मूर्तिकला की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।
* संग्रहाध्यक्ष -- केन्द्रीय संग्रहालय ए.बी. रोड़, इन्दौर - 452001
प्राप्त - 19.08.02
तेरापंथ श्वेताम्बर जैन धर्मसंघ के आचार्य श्री महाप्रज्ञ के सान्निध्य में डॉ. कमारपाल देसाई को भारत जैन महामंडल
द्वारा स्थापित प्रथम 'जैन गौरव' अलंकरण प्रदान करते हुए केन्द्रीय मत्री डॉ. सत्यनारायण जटिया
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अर्हत् वचन, 15 (3), 2003
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