Book Title: Arhat Vachan 2003 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 79
________________ टिप्पणी-1 अर्हत् वचन (कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर) विज्ञान एवं नेतृत्व के प्रतीक - गणेश - आचार्य कनकनन्दी* भारत वर्ष विविधता भरा देश है। यहाँ क्रांति - शांति का सूत्रपात, संवर्द्धन, संरक्षण प्रदान करने वाले अनेकों महापर्व आते हैं। गणेश चतुर्थी भी इसी में से एक है। इसका प्रारम्भ कब, कैसे हुआ, इसका इतना महत्व नहीं, जितना इसकी उपयोगिता का है। प्राचीन साहित्य रचनाओं, चित्रकारों, शिल्पकारों, कलाकारों ने अन्तर्निहित सत्य को अक्षर से भी भिन्न प्रणाली से व्यक्त करने का प्रयास किया है। जिससे कभी अर्थ विपर्यास हआ तो कभी मूल रहस्य पर पर्दा पड़ा। लेकिन फिर भी सत्य, तथ्य पूर्ण रहस्य खोजियों के नजरों से ओझल नहीं हो सका। गणेशजी के अनेकों नाम हैं - गणपति, गणधर, गणेश, गजानन, विनायक, अग्रपूज्य, विघ्नविनाशक, एकदन्त, दाता आदि। गणेशजी की कृति की जिसने भी परिकल्पना की होगी, निश्चित ही वे गणेश पुत्र (प्रज्ञा पुत्र) होंगे। गणेशजी गणनायक हैं, गण के धारी हैं, गण के ईश हैं, विघ्न विनाश के नायक हैं, प्रमुख पुरुष हैं, विघ्न विनाशक हैं। ऐसे ही मान्यवरों से धरती गौरवान्वित होती है। गणेशजी संघ, समाज, राष्ट्र व धर्म की प्रतिमूर्ति हैं। इस अर्थ में वे गणनायक हैं। गणेशजी के गुरुत्व पद पर आसीन होने से गुण सृजेता (ब्रह्मा) हैं, गुण विस्तारक विष्णु हैं, दर्गण विध्वंसक (महेश) हैं अतएव वे ब्रह्मा, विष्णु, महेश हैं। वे लम्बोदर इस अर्थ में हैं कि अपरम्पार ज्ञान धारी होने पर भी कभी वे उससे तृप्त नहीं होते। लम्बा उदर असामान्य पात्रता का द्योतक है। सतत श्रमजीवी प्रयत्नशील रहते हैं, इस माने ज्ञान आराधक हैं। दीर्घ कर्ण उनकी शास्त्र श्रवण की जिजीविषा का संकेत है। किसी भी व्यक्ति के कान लम्बे होना उनके श्रोतृत्व गुण का लक्षण है। सामुद्रिक शास्त्र में इसे शुभ लक्षण कहा है। गणपति के चार हाथ हैं। चार हाथ चतुर्मुखी विकास का प्रतीक है। सर्वांगीण विकास ही व्यक्ति की पराकाष्ठा है। यह बहुमुखी प्रतिभा की प्रेरणा देता है। संकीर्णता को मिटाकर पूर्णता की ओर बढ़ना सिखाता है। प्रथम हाथ में 'वीणा' है। विश्व प्रसिद्ध बड़ी-बड़ी हस्तियाँ संगीत प्रिय, कलाप्रिय रही है। फिर चाहे महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आईन्स्टीन हों, डॉ. अब्दुल कलाम हों या प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी हों। संगीत बिना जीवन अधूरा है। दूसरे हाथ में 'फरसा' है। यह शस्त्र विशेष बुराइयों का सामना करने की शिक्षा देता है। भीतरी व बाहरी बुराइयों को नष्ट किये बिना किसी भी व्यक्ति की अन्तर्निहित शक्तियाँ जाग्रत नहीं हो सकतीं। सामाजिक, राष्ट्रीय, आध्यात्मिक मान्यताओं को उखाड़ फेंकना ही युग पुरुषों का एकमात्र कार्य है। संगीत प्रेम का प्रतीक है, शांति का प्रतीक है तो शस्त्र बुराइयों के प्रति असहमति का प्रतीक है। गणेशजी के हाथ में लड्डू है। लड्डू स्वाद वाला है, ज्ञान सुख स्वरूप है। जिस शिक्षा से आत्म आनन्द का स्वाद आता है, वही अनौपचारिक शिक्षा है। शेष विद्या का बोझ है। गणेशजी का एक हाथ आशीर्वादात्मक है। सच्चे भगवान कभी क्रूर नहीं होते, वे अभय मुद्रा से अपनी शुभ लेश्या से सम भाव से कातर जीवों को अभय प्रदान करते हैं। अर्हत्वचन, 15 (3),2003 77 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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