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वष - 15, अफ-3, 2003, 23-31
अर्हत् वचन (कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर)
व्रत - उपवास : वैज्ञानिक अनुचिंतन
- अनिल कुमार जैन* सारांश
प्रस्तुत आलेख में जैन एवं जैनेतर परम्परा में व्रत, उपवास के महत्व तथा शरीरविज्ञान की दृष्टि से उसकी उपयोगिता की विस्तार से चर्चा की गई है। इसी क्रम में कतिपय विशिष्ट असंघ कताओं के उपवास के प्रयोगों एवं उसके परिणामों को भी संकलित किया गया
-सम्पादक जैन धर्म में पर्व, व्रत और उपवास
प्रत्येक वर्ष अनेकों पर्व आते हैं। ये पर्व प्राय: सामाजिक एवं धार्मिक प्रकृति के होते हैं लेकिन कुछ राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय महत्व के भी होते हैं। ये पर्व हमें रोजमर की आम जिन्दगी से हटकर कुछ विशेष सोचने, चिन्तन - मनन करने की प्रेरणा है। पर्व का अर्थ होता है गाँटा जिस प्रकार गन्ना चूसते -- चूसते बीच में गाँठ आ जाता है
और उस वक्त तक हम रसास्वादन नहीं कर पाते हैं जब तक कि वह गोठ रही आती है, उसी प्रकार पर्व के दिन भी हमें कुछ हटकर सोचा की प्रेरणा देते हैं।
धार्मिक पर्वो को कुछ विशेष रूप से मनाया जाता है। इन दिनों प्रायः स और उपवास रखा जाता है। व्रत का सामान्य अॅ होता है संकल्प, नियम या उपवास और उपवास का सामान्य अर्थ होता है भोजन का त्याग। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि व्रत के दिनों में यानि कि धार्मिक पर्व के दिनों में नियम पूर्वक या संकल्ला पूर्वक भोजन का त्याग करा जाता है। भारत वर्ष में यदि सभी धर्मों के पर्वो को इकट्ठा करके देखा जाय तो प्रतिदिन अनेक पर्व आते हैं। अकेले जैन धर्म में इन पर्वो और व्रतों की संख्या प्रतिवर्ष 250 से अधिक ही बैठती है। चौबीस तीर्थकरों के पाँच - पाँच कल्याणक के हिसाब से 120 पर्व (कुछ पर्व एक दिन में दो भी हो जाते हैं), अष्टपी- चतुर्दशी व्रत, अष्टान्हिका एवं दसलक्षण पर्व, सोलहकारण, रत्नत्रय व्रत आदि सभी इनमें सम्मिलित हैं।
हाँलाकि प्रत्येक धर्म पर्व के दिनों में व्रत और उपवास के महत्व को नकारा गया है, लेकिन जैन धर्म में इन्हें जिस गहराई तक समझा गया है उतना अन्य धर्मों में नहीं समझा गया है। प्राय: सभी जैनेत्तर धर्मों में व्रत और उपवास का हज देवी-देवताओं को प्रसन्न करके भौतिक साख प्राप्त करने तक ही सीमित रहा है जबाफ जैन धर्मानुसार ये व्रत - उपवास मात्र भौतिक सुख ही नहीं बल्कि मोक्ष रूपी अनन्त सुख को प्रदान करने वाले होते हैं बशर्ते कि इन्हें ठीक प्रकार से समझा हो तथा उनका ठीक प्रकार से पालन किया गया हो।
जैन धर्मानुसार पर्व के दिनों में चारों प्रकार के बाहर का त्याग करके धर्म ध्यान में दिन व्यतीत करना प्रोषधोपवास कहलाता है, उस दिन हिंसादि आरम्भ करने का भी त्याग होता है। एक बार भोजन करना प्रोषध कहलाता है तथा सर्वथा भोजन न करना उपवास कहलाता है। दो प्रोषधों के बीच एक उपवास करना 'प्रोषधोपवास' है। इसे श्रावकों
* प्रबन्धक - तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग, बी - 26, सूर्यनारायण सोसायटी, विसत पैट्रोल पंप के सामने, साबरमती,
अहमदाबाद - 380005
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