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पाठकगण ठीक प्रकार से समझ सकें इस हेतु यह बतलाना भी आवश्यक है कि जब कोई वस्तु दृश्य प्रकाश में उपस्थित इन सात रंगों का पूर्ण परावर्तन कर देती है तब वह वस्तु श्वेत (स्फटिक) दिखलाई देती है। परन्तु जब इन सात रंगों का वस्तु द्वारा पूर्ण अवशोषण कर लिया जाता है तब वस्तु काली दिखाई देती है।
जब हम दृश्य प्रकाश में उपस्थित विभिन्न रंगों के माध्यम से णमोकार महामंत्र का उच्चारण करते हैं तब नीचे चित्र में दर्शाये अनुसार ऊर्जा का संचय करते हैं। संचित ऊर्जा से आत्मा में स्थित दिव्य शक्तियाँ अधिक से अधिक उत्पन्न होती हैं। एक बिन्दु ऐसा आता है जब तीव्र ध्यान रूपी अग्नि (संचित ऊर्जा) से कर्म बंधन तड़ - तड़ कर टूटना प्रारम्भ कर देते हैं।
विभिन्न रंगों के माध्यम से णमोकार महामंत्र के उच्चारण से ऊर्जा का संचय
अल्प भाव की प्रार
निर्विक
ऊर्जा नगण्य
स्फटिक (श्वेत)
मानत
मंत्र ध्वनि
सर्वाधिक
णमो अरिहंताण
संचित ऊर्जा सर्व
नील वर्ण
वनि तरंगें
ऊर्जा संच
ऊर्जा सर्वाधिक
मंत्र ध्वनि
नोलोए सव्वसाही
णमो सिद्धाणं ध्वनि तरंगें
रक्त वर्ण न संचय प्रारम्भ
ध्याता
बढ़ती हुई ऊर्जा
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होती ऊर्जा
हरित वर्ण मंत्र ध्वनि तरंगें।
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पीत वर्ण मंचित ऊर्जा में
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चित्र में दर्शाये अनुसार जब हम साफ स्वच्छ स्थान पर शुद्ध साफ होकर पूर्ण मनोयोग से आत्मकेन्द्रित होकर श्वेत वर्ण के माधर' से 'णमो अरिहंतागं' का उच्चारण करते हैं तब हमारे भाव निर्मल एवं निर्विकल्प हो जाते हैं। इस बिन्दु पर हम अपने आपको एकदम तरोताजा महसूस करते हैं एवं अगले पदों के उच्चारण द्वारा प्राप्त ऊर्जा को ग्रहण करने हेतु पूर्ण रूप से तैयार हो चुके होते हैं। आगे जैसे ही रक्त वर्ण के माध्यम से महामंत्र का दूसरा पद ‘णमो सिद्धाणं' का उच्चारण किया जाता है तब मंत्र ध्वनि तरंग जैसे ही रक्त वर्ण के माध्यम से होती हुई हमारी आत्मा तक पहुँचती है वैसे ही आत्मा
अर्हत् वचन, 15 (3), 2003
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