________________
वर्ष-15. अंक-3, 2003, 49-52
अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर
णमोकार महामंत्र : एक वैज्ञानिक अनुचिन्तन
- अजितकुमार जैन*
सारांश
णमोकार महामंत्र अत्यन्त वैज्ञानिक है एवं इस मंत्र के जाप से शरीर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस मंत्र से शरीर में संचित ऊर्जा दिव्य शक्तियों की प्रकटीकरण का पथ प्रशस्त करती है एवं अन्ततोगत्वा कर्मों की निर्जरा में सहायक होती है।
__ - सम्पादक मन के साथ जिन ध्वनियों का घर्षण होने से दिव्य ज्योति प्रकट होती है उन ध्वनियों के समुदाय को मंत्र कहा जाता है, मंत्र और विज्ञान दोनों में अन्तर है, क्योंकि विज्ञान का प्रयोग जहाँ भी किया जाता है, वहाँ फल एक ही होता है, परन्तु मंत्र में यह बात नहीं है, उसकी सफलता साधक और साध्य पर निर्भर करती है। ध्यान के अस्थिर होने से मंत्र असफल हो जाता है। मंत्र तभी सफल होता है, जब श्रद्धा, इच्छा और दृढ़ संकल्प के साथ एकाग्रता - तीनों ही यथावत कार्य करें। सर्वाधिक कठिन होता है एकाग्रचित्त का होना, जो बिना किसी माध्यम के नहीं आती। णमोकार महामंत्र का उच्चारण यदि वर्गों के माध्यम से किया जावे तो चित्त की एकाग्रता तो बढती ही है साथ में वर्ण रूपी "लैंस' मंत्र ध्वनि रूपी तरंगों को केन्द्रीभूत कर लेती हैं, जिससे महामंत्र के उच्चारण से आत्मा में अधिक ऊर्जा का संचय होता है। (जैसे लैंस के माध्यम से सूर्य रश्मियों का अधिक से अधिक केन्द्रीयकरण होने से सूर्य रश्मियाँ अधिक से अधिक ऊष्णता को प्राप्त हो जाती है एवं एक समय ऐसा आता है जब लैंस के नीचे स्थित कागज में अग्नि प्रज्जवलित हो जाती है। संचित ऊर्जा के प्रभाव में आत्मा में स्थित दिव्य शक्तियाँ अधिक से अधिक उत्पन्न होती हैं, अन्त में ऐसी भी एक परिस्थिति उत्पन्न होती है, जिससे तीव्र ध्यान रूपी अग्नि से समस्त कर्म बंधन एक - एक कर टूट जाते हैं।
सूर्य रश्मियाँ
लैंस -
_
I//In
अग्नि
→((((
।))))
णमोकार महामंत्र मंत्र शास्त्र की दृष्टि से विश्व के समस्त मंत्रों में अलौकिक है। इसकी महानता को वे ही समझते हैं जिन्होंने निष्काम भाव से इसकी आराधना कर सिद्धि या फल प्राप्त किया है। संसार की ऐसी कोई ऋद्धि-सिद्धि नहीं है जो इस मंत्र के द्वारा प्राप्त न की जा सके। मंत्र की महत्ता के सन्दर्भ में कहा गया है कि पंच नमस्कार महामंत्र सब पापों का नाश करने वाला और सब मंगलों में पहला मंगल है।
एसो पंच णमोक्कारो सव्वपावप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसिं पढ़मं हवई मंगलं॥
* प्राध्यापक - रसायनशास्त्र, एस.एस.एल. जैन महाविद्यालय, विदिशा-464001 (म.प्र.)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org