Book Title: Arhat Vachan 2003 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

View full book text
Previous | Next

Page 63
________________ वीरतापूर्वक किया था। __ ग्यारहवीं सदी के समारम्भ का समय था जब मुसलमान शासक महमूद ने भारत पर आक्रमण किया था। पं. द्विजदीन ने उस समय की भारतीय अवस्था को निरूपित करते हुए 'श्री सुहेलबावनी' के द्वितीय छन्द में कहा है - ग्यारहवीय सदी का समारम्भ हो रहा था जब, भारत के भाग्य पै बिगड़ चूका व्योम था। खण्ड-खण्ड होके राज दण्ड हो चले थे ढीले, अहमान्यता का विष भरा रोम-रोम था। कवि द्विजदीन देश डूबा था विलासिता में, भूल चुका नाम रामकृष्ण हरिओम था। ज्ञान रवि मोह गिरि पीछे जा छिपा था तब, दम्भ का विषैला अति घोर तम तोम था। कविवर पं. द्विजदीन ने प्रस्तुत छन्द में ग्यारहवीं सदी के भारत की विपन्न दशा का चित्रण किया है। हमारा राष्ट्र छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त था। सभी देसी राजा ज्ञानहीन और दम्भ से भरे हुए थे। पूरा देश विलासिता के महानद में डूबा हुआ था। ईश्वर की उपासना को बिसरा दिया गया था। यहाँ यह भाव पकड़ में आता है कि ग्यारहवीं सदी के भारत में छोटे-छोटे राज्यों के शासकों में राष्ट्रीयता का भान और पारस्परिक सामंजस्य का भाव नहीं था तथा तब के भारत की ऐसी दुर्बल अवस्था थी कि साम्राज्यवाद के विस्तार के भूखे किसी भी विदेशी शासक के भारत पर हमला करने का मार्ग प्रशस्त था। फलस्वरूप तत्कालीन भारत की आंतरिक दुरावस्था का लाभ लेने के अर्थ में मुस्लिम शासक महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण कर दिया -- जोरि दल लायो गजनी ते आतताइन को, करत कसाइन को काम असि फैरि कै। लूटत नगर गाँव गोठि लौ बचत नाहिं, आगिन लगावै औ. जरावै घेरि घेरि कै॥ हाहाकार मचिगो प्रलै सो सिंधुतट पर, पंचनद पाँयन कुचलि डारयो खेरि कै। बाल वृद्ध वनिता युवक जरि व्हार भये, जमकी जमाति से हरामी हँसे हेरि कै॥ महमूद गजनी को भारतीय राजे-महाराजे की ढीलों का सुफल मिला। भारत में प्रवेश कर महमूद की दृष्टि अवध को जीतने के लिये ललचायी। तब अवध का बहराइच जनपद का क्षेत्र जैन नरेश सुहेलदेव के अधीन था। महमूद गजनी ने संभवत: प्रतापी राजा सुहेलदेव को दुर्बल मानकर उनसे स्वयं युद्ध न करने की सोचकर अपनी बहिन के पुत्र सैयद सालार को बहराइच पर आक्रमण करने के लिये भेजा था। साह संग सैयद सलार है सरोस आयो, जोरि दल दीरघ लुटेरे तुरकन को। पंचन्नद गुरजर मथुरा कन्नौज देस, करकन लागे देखि तेग तरकन को।। चौवा चौवा भूमि सब कौवा सोमझाय डार्यो, क्रूरता दिखाइ भे, मकौवा लरिकन को। झण्डा इसलामी गाड्यो सप्त ऋषि थान पर, रूद्रपुरी डांड्यो भय छाँड्यो नरकन को।। रणवांकुरा सैयद सालार की बहराइच पर आक्रमण की सूचना से वीर सुहेलदेव का अर्हत् वचन, 15 (3), 2003 61 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148