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यहाँ हारे ओम् अकेले राम कृष्ण के नाम के डूब जाने के अर्थ का भी मान देता है और साथ ही साथ राम, कृष्ण, हरि, ओम् चारों को सम्मिलित रूप में डूब जाने की स्थिति को भी प्रकट करता है।
श्री सुहेलबावनी का प्रथम संस्करण 1950 में प्रकाशित हुआ था। अत: कवि श्री द्विजदीन ने अपनी कृति सुहेलबावनी में काव्य हेतु उस समय के निर्धारित प्रतिमानों का आसरा लिया है लेकिन यह मणिकाँचन संयोग ही कहलायेगा कि श्री सुहेलबावनी के रचने में कवि ने देश - काल की दृष्टि से भाषा के रूप को अपनाया है।
अब सवाल यह है कि इतने लम्बे अन्तराल के पश्चात् यानी कि सन् 1950 के बाद 50 वर्ष के बीतने पर सन् 2001 में श्री सुहेलबावनी का दूसरा संस्करण आया है। इतने वर्षों के पश्चात् आखिरकार श्री सुहेलबावनी को दूसरे संस्करण के रूप में पुनर्जीवित करने की क्यों सोची गई? यही एक वह प्रश्न है जो श्री सुहेलबावनी को प्रासंगिकता से जोड़ने का अभिप्राय देता है।
वर्तमान में राष्ट्र के सम्मुख असुरक्षा का भाव फिर पैदा हो गया है। ऐसे समय में श्री सुहेलबावनी देश के कर्णधारों को जगाये रखने में प्रेरणास्रोत बनकर अपने दूसरे संस्करण के रूप में सामने आई है।
श्री सुहेलबावनी मात्र बावन छन्दों का स्फुट-काव्य भर नहीं है बल्कि इतिहास का एक सच्चा अन्वेषण कार्य है।
श्री सुहेलदेव की रचना के सन्दर्भ में यह बात निर्विवाद रूप से मान्य करनी होगी कि श्री द्विजदीन का कवि जिस समय जिस प्रकार की भावनाओं से आन्दोलित हो उठा था, जिस प्रकार के भावावेश ने उसके हृदय को झंकृत किया था, उसका यथा तथ्य अंकन और झनझनाहट सुनाने का कवि ने प्रयास किया और वह उसमें सफल भी हुआ
सन्दर्भ 1. श्री सुहेलबावनी, स्व. श्री गुरुसहाय दीक्षित 'द्विजदीन', लखनऊ, 2001. 2. हिन्दी साहित्य का इतिहास, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल। 3. इरविन एस.सी., दि गार्डेन ऑफ इण्डिया (लखनऊ), वोल्यूम - 1, पृष्ठ 59, 62 - 63. 4. नेविल एच. आर. गोण्डा, गजेटियर, सन् 1905, 9 बही इलाहाबाद, सन् 1921, पृष्ठ 133, 138 एवं
178. 5. पाण्डेय के एन. गोण्डा, गजेटियर, पृष्ठ 23 - 24, लखनऊ, 1989, 6. नेविल बहराइच गजेटियर, पृष्ठ 17, लखनऊ, 1988. 7. कनिंघम ए. आर्कि., सर्वे रिपो ऑफ इण्डिया, भाग - 2, पृष्ठ 306 - 313, 1872 व स्मिथ जनरल ऑफ
एशियाटिक सोसायटी, पृष्ठ1, 1900. नोट : सन्दर्भ क्रमांक 3 से 7 तक - डॉ. शैलेन्द्रकुमार रस्तोगी, पूर्व निदेशक - रामकथा संग्रहालय, अयोध्या द्वारा श्री सुहेलबावनी के प्रारम्भिक पृष्ठों में 'श्री सुहेलदेव कौन' शीर्षक की सत्यापना में जिन सन्दर्भ ग्रन्थों का आधार ग्रहण किया है उन आधारों से संश्लिष्ट होकर प्रस्तुत आलेख के प्रणयन में उनका साभार उपयोग किया गया है।
प्राप्त - 27.09.02
अर्हत् वचन, 15 (3), 2003
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