Book Title: Arhat Vachan 2003 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 36
________________ Sincerely, Mary Lou Van Atta (Newark, ohio) एक अन्य अमरीकी पाठिका इस पुस्तक के पृ. 119 पर अपना अनुभव वर्णित करती है कि किस तरह शरीर से आसक्ति भाव त्याग कर परमात्म तत्व में अपनत्व का अभ्यास करने से उसका कैंसर दूर हो गया। डॉक्टरों ने तो उसे कह दिया था कि अब उसकी मृत्यु कुछ ही मांह दूर है किन्तु न केवल उसका कैंसर दूर हुआ अपितु 9 (नौ) वर्षों में एक बार भी उसे डॉक्टर या अस्पताल की आवश्यकता नहीं हुई। (नोट इस टिप्पणी का उद्देश्य तो छिपी हुई आध्यात्मिक शक्ति को उजागर करने का है। चिकित्सा विज्ञान से हजारों वर्षों में अब तक जो रोगियों को प्रत्यक्ष लाभ मिल रहा है उसका महत्व नकारा नहीं जा सकता है।) आध्यात्मिक मनोविज्ञान की आवश्यकता एक जमाना था जब मनोवैज्ञानिकों के सामने ज्यादा समस्याएं पारिवारिक झगड़ों की या हीन भावना से ग्रस्त निराशा की आती थी। आत्मा का सहारा लिए बिना ऐसी समस्याओं को सुलझाने के लिए भूतकाल के व बचपन के अनुभवों को सुनकर रोगियों को सलाह मिलती थी आज जीवन में संघर्ष बढ़ गया है व व्यक्ति अकेलापन कठिनाई के समय अनुभव करता है। जिसके पुत्र की हत्या हो गई हो उसको उसके बचपन की कोई भी घटना मन की अशान्ति को हल करने का मार्ग नहीं दिखा सकती है। उसके लिए तो आत्मा का आश्रय ही परम औषधि है जो उक्त उदाहरण में अमर करती हुई दिखाई देती है । ' आप "मुझे देख नहीं सकते, आप तो केवल शरीर देखते हो, जिसे मैं समझ बैठते हो, शरीर जो दिखता है वह है नाशवान, किन्तु "मैं" तो हूं अमर । इस तरह की आवश्यकता के आधार पर ही गेरी झुकाव जैसे मनोवैज्ञानिक लिखते हैं कि अब ""आध्यात्मिक मनोविज्ञान को विकसित करने की आवश्यकता है जिसमें आत्मा, पुनर्जन्म एवं कर्म सिद्धांत हाशिये में न होकर केन्द्र में हो उनके शब्दों में" "Re-incarnation and the role of karma in the development of the soul will be central parts of spiritual psychology". गेरी झुकाव के अनुसार इस तरह के आध्यात्मिक मनोविज्ञान द्वारा इस स्तर की समझ विकसित हो सकती है कि क्रोध, डर, ईर्ष्या आदि भावनाओं को जिनसे व्यक्ति को हानि पहुँचती है उनको भी इस तरह से समझने की आवश्यकता है कि इनके उदय के समय व्यक्ति और नये ऋणात्मक कर्म नहीं बांधे। गेरी झुकाव 10 के शब्दों में - "The fears, angers and jealousies that deform the personality can not be understood apart from karmic circumstances that they serve. When you understand, and truly understand, that the experiences of your life are necessary to the balancing of the energy of your soul, you are free to not react to them personalty, to not creats more negative karma for your soul." गेरी झुकाव का मन्तव्य उक्त कथन में मानवीय कमजोरियों के प्रति भी समता भाव रखने का है। वस्तु व्यवस्था पर यानी कर्म सिद्धांत पर आस्था होना आवश्यक है। अर्हत् वचन, 15 (3) ; 2003 34 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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