Book Title: Arhat Vachan 2003 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 48
________________ इस्लाम धर्म इस्लाम के सभी सूफी- सन्तों ने नेक जीवन, दया, गरीबी व सादा भोजन तथा अण्डा - मांस न खाने पर जोर दिया है। शेख, इस्माइल, ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती, हजरत निजामुद्दीन औलिया, बू अली कलन्दर, शाह इनायत, मीर दाद, शाह अब्दुल करीम आदि सूफी सन्तों का मार्ग नेकरहमी, आत्मसंयम, शाकाहारी भोजन व सबके प्रति प्रेम का था। उनका कथन है कि :- 'ता बयाबी दर बहिश्ते अदन् जा शफ्फते बनुभाए ब खल्के खुदा' अर्थात् अगर तू सदा के लिये स्वर्ग में निवास पाना चाहता है तो खुदा की सृष्टि के साथ दया व हमदर्दी का बर्ताव कर। ईरान के दार्शनिक अलगजाली का कथन है कि रोटी के टुकड़ों के अतिरिक्त हम जो कुछ भी खाते हैं वह केवल हमारी वासनाओं की पूर्ति के लिये होता है। लंदन की मस्जिद के शाकाहारी इमाम अल हाफिज बशीर अहमद मसेरी ने अपनी पुस्तक Islamic Concerm about Animals' के पृष्ठ 18 पर हजरत मुहम्मद साहब का कथन इस प्रकार दोहराया है - 'यदि कोई इन्सान किसी बेगुनाह चिड़िया तक को भी मारता है तो उसे खुदा को इसका जवाब देना पड़ेगा और जो किसी परिन्दा (पक्षी) पर दयाकर उसकी जान बख्शता है तो अल्लाह उस पर कयामत के दिन रहम करेगा।'11 ईसाई धर्म ईसामसीह को आत्मिक ज्ञान जॉन दि बैप्टिस्ट से प्राप्त हुआ था जो अण्डे - मांस के घोर विरोधी थे। ईसामसीह की शिक्षा के दो प्रमुख सिद्धान्त है - जीव हत्या नहीं करोगे (Thou shall not kill) तथा अपने पड़ोसी से प्यार करो (Love thy neighbour)| इनसे अण्डा-मांसाहार का निषेध हो जाता है।12 जैन धर्म अहिंसा जैन धर्म का सबसे मुख्य सिद्धान्त है। जैन ग्रन्थों में हिंसा के 108 भेद किये गये हैं। भाव हिंसा, द्रव्य हिंसा, स्वयं हिंसा करना, दूसरे के द्वारा हिंसा करवाना अथवा सहमति प्रकट करके हिंसा कराना आदि सभी वर्जित हैं। हिंसा के विषय में सोचना तक पाप माना है। हिंसा मन, वचन व कर्म द्वारा की जाती है। अत: किसी को ऐसे शब्द कहना जो उसको पीड़ित करे, वह भी हिंसा मानी गई है। ऐसे. धर्म में जहाँ जानवरों को बांधना, दुःख पहुँचाना, मारना - पीटना व उनपर अधिक भार लादना तक पाप माना जाता है, वहाँ अण्डा - मांसाहार का तो प्रश्न ही पैदा नहीं होता।13 इसी प्रकार बौद्ध मत में अहिंसा पर बल देते हुए अण्डा - मांसाहार की मनाही है।14 आहार का उद्देश्य ___ भोजन से मनुष्य का उद्देश्य मात्र उदरपूर्ति या स्वादपूर्ति नहीं है अपितु स्वास्थ्य - प्राप्ति, निरोग रहना व मानसिक और चारित्रिक विकास करना भी है। आहार का हमारे स्वास्थ्य, आचार, विचार व व्यवहार से सीधा सम्बन्ध है। मनुष्य की विभिन्न प्रकार के भोजन के प्रति रूचि उसके आचरण व चरित्र की पहचान कराती है। "जैसा खाये अन्न, वैसा बने मन'। अत: आहार का उद्देश्य उन पदार्थों का सेवन करना है जो शारीरिक, नैतिक, सामाजिक व आध्यात्मिक उन्नति करने वाले, रोगों से बचाव करने वाले तथा स्नेह, प्रेम, दया, अहिंसा, शान्ति आदि गुणों को बढ़ावा देने वाला हो।15 प्राय: देखने में आता है कि दुष्कर्म, बलात्कार, हत्या, निर्दयतापूर्ण कार्य करने वाले व्यक्ति साधारण स्थिति में ऐसे दुष्कर्म नहीं करते अपितु इन कुकर्मों के करने से पहले साधारण विस्थे में भारत दुष्कर्म नहीं बलात्काअपितु झन कुर्दनापक करने से पहले 46 अर्हत् वचन, 15 (3), 2003 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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