Book Title: Arhat Vachan 2003 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 35
________________ अर्हत्व कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर वर्ष 15, अंक 3, 2003, 33-41 - - आत्मज्ञान : आधुनिक मनोविज्ञान एवं हमारे जीवन के संदर्भ में ■ पारसमल अग्रवाल * सारांश आलेख में आत्मा के वास्तविक स्वरूप का अध्यात्म एवं आधुनिक मनोवैज्ञानिकों/चिन्तकों की दृष्टि से परिचय देने के उपरान्त भागदौड़ पूर्ण वर्तमान जीवन शैली में वास्तविक शान्ति के उपाय वर्णित किये गये हैं। - सम्पादक पश्चिम जगत में भौतिकता से लिप्त मानवों को सुख-शान्ति का मार्ग दिखाने हेतु अविनाशी आत्मा के अस्तित्व को कई उच्च कोटि के मनोवैज्ञानिक सरल भाषा में पुस्तकों, कैसेटों एवं व्याख्यानों द्वारा समझा रहे हैं। ऐसे मनोवैज्ञानिकों में वेन डायर, 1 दीपक चोपड़ा, 2 केरोलिन मीस, 3 लुई हे, 4 गेरी झुकाव, 5 रिचर्ड कार्लसन, आदि के नाम प्रमुख हैं। पश्चिम के पाठकों को ऐसे वैज्ञानिक क्या परोस रहे हैं इसकी एक झलक वेनडायर की निम्नांकित पंक्तियों से मिल सकती हैं - "Make an attempt to describe yourself without using any labels. Write a few paragraphs in which you do not mention your age, sex, position, title, accomplishments, possessions, experiences, heritage or geographic data. Simply write a statement about who you are, independent of all appearances". उक्त पंक्तियों का भावार्थ यह है कि अपने परिचय के बारे में कुछ पैराग्राफ ऐसे लिखो जिसमें आपकी उम्र, लिंग, पदवी, उपाधि, उपलब्धियां, संपत्ति, संग्रह, अनुभव, परिवार, नगर आदि का उल्लेख न हो। केवल अपने बारे में ऐसा परिचय लिखो जो इन बाहरी रूपों पर आधारित न हो। ऐसा लिखने के पीछे वेन डायर का भाव यह स्पष्ट करने का है कि समस्त बाहरी रूपों से परे भी आप हो । 'मैं ज्ञानानन्द स्वभावी हूँ वाली धुन तक वे अपने पाठकों को ले जाना चाहते हैं। Jain Education International ऐसी पुस्तकों के कई संस्करण निकलना इस बात का प्रमाण है कि जनता को इनमें लाभ मिल रहा है। पाठकों को लाभ कैसा मिल रहा है इसकी एक झलक एक पाठक के निम्नांकित शब्दों से स्पष्ट होती है। "प्रिय डॉ. डायर, मेरे पुत्र की हत्या लुटेरों द्वारा हो गई थी व उससे भारी आघात मुझे पहुँचा था । आपकी पुस्तकों व कैसेटों से जब मुझे यह समझ में आया कि हम शरीर के अन्दर स्थित आत्मा हैं, न कि प्राण सहित शरीर, तब मुझे सांत्वना मिली। मैं अपने पुत्र की मृत्यु को तो नहीं भूल पाई हूँ किन्तु यह समझ में आया है कि मृत्यु कहानी का अन्त नहीं है। आपसे प्राप्त शिक्षा को मैं अपने शब्दों में निम्नांकित कविता के रूप में लिख रही हूं जिसे पढ़कर आपको अच्छा लगेगा * रसायनशास्त्र विभाग, ओक्लाहोमा स्टेट यूनिवर्सिटी, स्टिलवाटर ओ.के. 74078 यू.एस.ए. - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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