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हा ता निरागा बनन में बहुत मदद मिलता है। वे लिखत ह "म मानता हू कि निराग आत्मा का शरीर निरोग होता है अर्थात् ज्यों-ज्यों आत्मा निरोगी निर्विकार होती जाती है, त्यों-त्यों शरीर भी निरोग होता जाता है। लेकिन यहाँ निरोग शरीर के माने बलवान शरीर नहीं है। बलवान आत्मा क्षीण शरीर में भी वास करती है। ज्यों-ज्यों आत्मबल बढ़ता है, त्यों-त्यों शरीर की क्षीणता बढ़ती है। पूर्ण निरोग शरीर क्षीण भी हो सकता है।"
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यह सर्वविदित है कि गाँधीजी ने स्वयं कई कई दिनों के उपवास किये थे। इन उपवासों के दौरान उन्हें जो अनुभव हुए उन्हें लोगों के सम्मुख रखा। उन्होंने अपने आत्म चरित 'सत्य के प्रयोग' नामक पुस्तक में भी इनकी चर्चा की है।
क्या अधिक उपवासों से जीवन को खतरा है ?
यह एक दिलचस्प प्रश्न है कि क्या लगातार बिना भोजन के जीवित रहा जा सकता है। अधिकतर का विचार यह रहा है कि बिना भोजन के जीवन संभव नहीं है। लेकिन इस मान्यता को गलत सिद्ध कर दिया है कालीकट (केरल) के रिटायर्ड मैकेनिकल इन्जीनियर श्री हीरारतन माणक ने।" जब उन्होंने भगवान महावीर का जीवन चरित्र पढ़ा तो सौर ऊर्जा शोध के प्रति उनकी जिज्ञासाएं प्रबल होने लगीं भगवान् महावीर आतापना (सूर्य की रोशनी में साधना करना) क्यों लेते थे? उनके साढ़े बारह साल के कठोर साधना काल में उनको कमजोरी, थकावट एवं प्रमाद अनुभव क्यों नहीं हुआ? उन्हें भूख क्यों नहीं लगती थी ? ऐसे अनेक प्रश्नों पर उनका गहन चिन्तन चलने लगा।
श्री माणक ने कुछ मौलिक प्रयोग अपने ऊपर करने प्रारम्भ किये। उन्होंने प्रतिदिन 10-12 कि.मी. घूमना प्रारम्भ किया। उन्होंने पाया कि ऐसा करने से उनकी भूख की इच्छा में कमी आई। फिर उन्होंने शनैः शनै सूर्य से सीधे ऊर्जा ग्रहण करने की मौलिक पद्धति विकसित की और फिर प्रातःकाल सूर्य को 10-12 मिनट तक देखना प्रारम्भ किया। अब तो उनकी भूख और भी कम होने लगी। उनमें आश्चर्यजनक परिवर्तन होने लगे फिर उन्होंने उपवास करने प्रारम्भ कर दिये। 18 जून 1995 से 16 जनवरी 1996 तक उन्होंने गर्म पानी और सूर्य ऊर्जा के सेवन मात्र से सारे कार्यक्रम नियमित रूप से करते हुए उपवास किए। उपवास के बावजूद उनका स्वास्थ्य संतोषप्रद रहा।
अपने इस सफल प्रयोग से प्रेरित होकर चिकित्सकों की निगरानी में उन्होंने पुन: 1 जनवरी 2000 से 15 फरवरी 2001 तक 411 दिनों का उपवास किया। उपवास के दौरान चिकित्सकों ने उनके स्वास्थ्य को पूर्णतः संतोषजनक और तनाव एवं रोगों से मुक्त पाया। उन्हें कोई रोग नहीं हुआ तथा उनके सारे अंग ठीक प्रकार से कार्य कर रहे थे। 65 वर्ष की अवस्था में भी उनके शरीर में न्यूरोन का निर्माण होना पाया गया। इन उपवासों के दौरान ही उन्होंने पालीताना तीर्थ की लगभग 3500 सीढ़ियों को आसानी ने चढ़कर चिकित्सकों को विस्मय में डाल दिया। इस संदर्भ में उनका पूरा विवरण गुजरात मेडिकल जरनल के मार्च 2001 अंक में प्रकाशित हुआ है। आज भी वे लगभग न के बराबर तरल पदार्थ ग्रहण करते हैं। अमेरिका स्थित विख्यात संगठन नासा के नियन्त्रण पर वे वहाँ गये हुए हैं वहाँ वैज्ञानिक यह जानना चाहते हैं कि आखिर मनुष्य बिना खाये पीये कैसे जीवित रह सकता है।
श्री माणक ने अपने इन प्रयोगों से यह सिद्ध कर दिया है कि अधिक उपवास
अर्हत् वचन 15 (3), 2003
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