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में वर्णन है। वही बेसिक बात आगे जाकर गहराई में समझाई जाती है तो उस कारण से ऐसा नहीं कह सकते कि सभी कक्षाओं में वही पढ़ाई
ज्ञानी की वाणी तमाम शास्त्रों के सार रूपी है और जब वह वाणी संकलित होती है तब वह स्वयं शास्त्र बन जाती है। उसी प्रकार यह आप्तवाणी मोक्षमार्गी के लिए आत्मानुभवी के कथन के वचनों का शास्त्र है, जो मोक्षार्थियों को मोक्षमार्ग पर आंतरिक दशा की स्थिति के लिए माइल स्टोन की तरह काम में आएंगे।
शास्त्रों में सौ मन सूत में एक बाल जितना सोना बुना हुआ होता है, जिसे साधक को स्वयं ही ढूँढकर प्राप्त करना होता है। आप्तवाणी में तो प्रकट ज्ञानी ने सौ प्रतिशत शुद्ध सोना ही दे दिया है।
गुह्यतम तत्त्व को समझने के लिए यहाँ पर संकलन में परम पूज्य दादाश्री की वाणी में निकले हुए अलग-अलग उदाहरण प्रस्तुत किए गए हैं। अनुभवगम्य अविनाशी तत्त्व को समझने के लिए विनाशी उदाहरण हमेशा मर्यादित ही रहेंगे। फिर भी अलग-अलग एंगल से समझने के लिए तथा अलग-अलग गुण को समझने के लिए अलग-अलग उदाहरण बहुत ही उपयोगी हो जाते हैं। कहीं पर विरोधाभास जैसा लगता है लेकिन वह तुलनात्मक है, इसलिए अविरोधाभासी है। वह सिद्धांत का कभी भी छेदन नहीं करता।
परम पूज्य दादाश्री की बातें अज्ञान से लेकर केवलज्ञान तक की हैं। प्रस्तावना या उपोद्घात में संपादकीय क्षति हो सकती है। आज जितना समझ में आया, उसी अनुसार आज यह बताया गया है लेकिन ज्ञानी की कृपा से आगे जाकर विशेष ज्ञान निरावृत हो जाए तो वही बात अलग प्रतीत होगी। लेकिन वास्तव में तो वह आगे का विवरण है। यथार्थ ज्ञान की समझ तो केवलीगम्य ही हो सकती है ! इसलिए यदि कोई भूलचूक लगे तो क्षमा माँगते हैं। ज्ञानी पुरुष की ज्ञानवाणी को पढ़-पढ़कर अपने आप ही मूल बात को समझ में आने दो। ज्ञानी पुरुष की वाणी स्वयं क्रियाकारी है, अवश्य ही स्वयं उग निकलेगी।
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