Book Title: Anuyogdwar Sutra Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 17
________________ अनुयोगशार स्तम्भनिष्पादनं दुष्कर, तथैव चतुर्गतिसंसारेषु भ्रमतां जीवार्ना मनुष्यजमा दुर्लभम् तथा चायं संग्रह श्लोकः - ४ " चूर्णीकृत्य पराक्रमान्मणिमयं स्तम्भं सुरेण स्वयं, मेरौ सन्नलिका समीरवशतः क्षिप्तं रजेो दिक्षु तत् । स्तम्भस्तैः परमाणुभिः सुमिलितैर्लोके यथा दुष्करः, संसारे भ्रमतो मनुष्यजननं जन्तोस्तथा दुर्लभम् " ॥ इति । एवंविधमतिदुर्लभं मानुष ं जन्म सम्प्राप्य, मिथ्याच्चतिमिरप्रणाशकं श्रद्धाज्योतिः प्रकाशक तश्वातत्व विवेचक पीयूषपानमिव हितावहं चञ्चच्चन्द्रः चन्द्रमिव हृदयाह्लादक स्वप्रदृष्टवस्तुनः पुनर्जाग्रदवस्थायां - तल्लाभवत्प्रमोदजन कं भूमिगन निधान प्राप्तिमिव सुखजनक सकलसन्तापहारकं धर्मश्रवणं समुपलभ्य, कर पुनः उनसे मणिमय स्तभ बनाना चाहे तो जिस प्रकार यह स्तंभ निर्माण कार्य उनका दुष्कर है, उसी प्रकार से इस चतुर्गतिरूप संसार में भटकते हुए जीवों को मनुष्य जन्म-मिलना दुर्लभ है । यही बात इस "चूर्णीकृत्य - इत्यादि श्लोक द्वारा कही गई है । इस तरह से अति दुर्लभ बने हुए मनुष्यजन्म को पाकरके और इसमें भी मिथ्यात्वरूप अन्धकार को नाश करनेवाले श्रद्धारूप ज्योति का प्रकाश करनेवाले एवं तत्त्व और अतत्त्व का स्वरूप कहने वाले, ऐसे धर्म का श्रवण कि जो जीव के लिये अमृतपान के समान हितकारक है - चमकती हुई चन्द्रिका के समान, हृदयानन्दजनक है - जागृत अवस्था में स्वप्नदृष्ट वस्तुकी प्राप्ति के समान प्रमोदवारक है, भूमिगतनिधान की प्राप्ति के समान सुखदायक और समस्त सन्तानों का नाशक है, प्राप्त कः के तथा इसके प्रभाष से તેમાંથી માણિકય રતંભનું નિર્માણ કરૂં. તે તે વેર વિખર થઈને પડેલા પરમાણુઓને એકત્ર કરીને તેમાંથી માણિક્ય સ્ત ંભનું નિર્માણ કરવાનુ કામ તે દેવને માટે જેટલુ દુષ્કર છે, એટલું જ દુષ્કર ચાર ગતિવાળા આ સ'સારમાં ભટકતાં વાને માટે मनुष्य भन्भनी प्रसि३य अर्थ छे. मेन वात सूत्रअरे " चूर्णीकृत्य " धत्याहि खेो દ્વારા પ્રકટ કરી છે. આ રીતે અતિ દુર્લભ એવા મનુષ્યજન્મને પ્રાપ્ત કરીને, મિથ્યાત્વરૂપ અ`ધકારના નાશ કરનાર, શ્રદ્ધારૂપી જ્યેાતિને પ્રકાશિત કરનાર, તત્ત્વ અને અતત્ત્વના સ્વરૂપનુ પ્રતિપાદન કરનાર, એવા ધમ'નું શ્રવણ કે જે વેને માટે અમૃતપાન સમાન હિતકર છે, જે ચમકતી એવી ચન્દ્રિકાના પ્રકાશસમાન હૃદયને આનંદદાયક છે, જાગૃત અવસ્થામાં જે સ્વપ્નષ્ટ વસ્તુની પ્રાપ્તિના સમાન પ્રમાદકારક છે, જે ભૂમિની

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