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अनुसन्धान- ७५ (२)
जे पुरुष आंपणी जात्या कनइ अर्जिव करी हर्षीइ अनइ हर्ष हूंता दान दिई । तेह आगलि आपणूपू तद्गुण - ते जात्यादिके करी सरीखूं करइ । जे महात्मा पिंडनइ काजिई अम्हारी अमुकडी जाति अमुकउं कुल इम आपणपूं सरीखुं करीनइ जं आहार लिइ । अनइ गृहस्थ उत्तम जातिवंत भणी महात्माहुइ दान दिइ, ते आजीवनापिंड कहीइ । तथा जाति' अनइ कुल अनई गण अनइ कम्म अनइ शिल्पविज्ञान' एतलां वांना प्रकासी जं आहार लिइं ते आजीवनापिंड इम । पांचे प्रकारे हुइ ।
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हिव पांच प्रकार वखाणइ छइ
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माइभवा विप्पा व जाई' उग्गाइ पिउभवं च कुलं । मल्लाइ गणो किसिमाइ कम्म चित्ताइ सिप्पं तु ॥ ६४ ॥
माइभवा० || मातानी जाति अथवा ब्राह्मणक्षत्रियादिकनी जाणवी १ |
तथा उग्र - भोगादिक कुल अथवा बापनउ कुल जाणिवउं २ तथा मल्ल सारस्वतादिक गण जाति गणइ लोकप्रसिद्ध जाणिवउ ३ । तथा कृषि वणिज्यादिक कर्म जाणिवा ४। तथा चित्रकरादिकना चित्रामादिक अट्ठोत्तरसउ श (शि) ल्पविज्ञान जाणिवा ५ । एतां वानां प्रकासीनइ जे महात्मा आहार लिइ ते आजीवनापिंडदोष कहिउ छइ
॥६४॥
हिव पांचमउ वनीपकदोष वखाणइ छइ
पिंडट्ठा समणा'-ऽतिहि' माहण' किवण सुणगाई भत्ताणं । अप्पाणं तब्भत्तं दंसइ जं सो - वणीमुत्ति ॥ ६५ ॥
पिंडट्ठा० ॥ जे महात्मा श्रमण, चारित्रीया, बौद्धतापसादिक १ । तथा अतिथि-परहुणादिका तथा ब्राह्मण तथा कृपण अंधादिक दीन दुस्ठ ( स्थ) तथा श्वान-काक-बकादिक पांक्षीया हुई तेहहुईं जे महात्मा अम्हेइ गृहस्थपणाइ ऋषीश्वर ब्राह्मणादिकहुई घणी भक्ति करतां इम कही आपणपूं तेहहुईं भक्तउ जणावीनइ जे आहार लिइ ते वनीपर्कापिंड कहीइ । एतलई पांचमउ वनीपकपिंड दोष कहिउ
॥६५॥
हिव छट्ठउ चिकित्सापिंड दोष वखाणइ छइ