Book Title: Anusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 334
________________ अनुसन्धान- ७५ (२). किंनिस्साए णं भंते ! असु(र) कुमारा देवा उड्डुं उप्पयंति० जाव सोहम्मो कप्पो ?, गोयमा ! असुरकुमार देवा० इत्यादि, नण्णत्थ अरिहंते वा - १, अरिहंतचेइयाणि वा - २, अणगारे वा भावियप्पणो - ३, निस्साए उइढं उप्पयंति० जाव सोहम्मो कप्पो । त महादुक्खं खलु तहा-रूवाणं अरहंताणं भगवंताणं अणगाराण य अच्चासायणाए त्ति कट्टु ॥ इत्यादिक पाठ जाणणा उ । ३२४ तथा केवलज्ञानीजी केवल उपज्या पछै पिण आहार करै । उत्कृष्टा नव वरस ऊणा कोडाकोडिपूर्व केवलज्ञानी जीवै । आहार विगर इतनौ काल औदारिकशरीर कैसे चलै ? वेदनीकर्मको उदै हैई ज । तैजसंसरीर आहार पचावणैवालौ हैई ज | आहारकी तृष्णा कोई है नही, क्षुध्या वेदनी उपसमावणैकुं आहार लेते है | ज्ञानगुण अनंत प्रगट्यौ है । सो आतमाको गुण है । सरीर नवो कोई हुवो नही | पुद्गलरूप है । इस वास्तै केवलज्ञानी आहार करते है । अणसण संथारौ करैके तव आहारकौ सर्वथा त्याग करै सो सुत्रांमैं ठाम ठाम अधिकार है। तीर्थंकर महाराज केवलज्ञांन उपज्यां पछै आहार तौ करै परं, आप लैणेकुं न जाय। आहारके दूषण टालणैकु महाउपयोगी चउदपूर्वधारी प्रमुख साधू आहार ल्याय देवै। श्री भगवतीसुत्रमें पनरमें शतकै सींहै अणगार श्रीमहावीरस्वामिजीकुं रेवतीश्राविकाकै घरसैं बीजोरापाक ल्याय दियो है, इत्यादिक अधिकार प्रसिद्ध है । सामान्यकेवलीकै शिष्य उपयोगी हुवै तो सो आहार ल्याय देवै । नही तो, आपही ल्यावै । तथा शिष्यकुं केवल उपज्यौ हुवैं गुरुकुं खबर न हुवै तौ गुरु न जांणै तां लगै केवली शिष्य गुरुकुं आहार ल्याय देवै । जेसें पुष्पचूला आर्या अन्नकासुत आचार्यांकु आहार दियौ । इहां महानिसीथकी साख लिखी है । तथा आवश्यक निर्युक्ति दसवैकालिकनिर्युक्तिकी साख लिखी है । सो बत्तीससुत्रांक अनुसारै लिखी है । नंदीसुत्रमें माहानिशीथ गिण्यौ है । तथा नियुक्ति चूर्णि भगवतीजी प्रमुख में गिण्या है | तिणसैं बत्तीस मांनैगा, सो इणकुं भी मांनैगा । अरु इणांकुं न मानैं अरु कहै मैं बत्तीस मांनता हुं, सो प्रत्यक्ष मृषावादी है । जिनसासनकौ चोर है। उसकी संगति करेंगे, सो बापडा बहुत भवसमुद्रमैं बूडैं । ते तथा शत्रुंजय विमलाचलतीर्थ ऊपर थावच्चापुत्रजी शुकजी हजार

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