Book Title: Anusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
३२२
अनुसन्धान-७५(२)
आचारांगसुत्रे प्रथम श्रुतखंधै नवमें अध्ययने श्रीमहावीरस्वामीजीकी छद्मस्थ्यावस्था अधिकारें 'अबहुवाई' जैसो पाठ है। अबहुभाषीत्यर्थः ।४।
जिनमंदिर जिनप्रतिमा करायां का बहुडा लाभ है। थोडा दोष शास्त्रमें कह्या है। श्रीमहानिशीथ सुत्रका पाठ लिखै है -
काऊण जिणाययणेहिं मंडियं सव्वमेइणीपीठं ।
दाणाइ चउक्केणं सड्ढो गच्छिज्ज अच्चुअं जाव ॥१॥ इत्यादि तथा आवश्यकनियुक्तिमें भी बंदनाध्ययनें कह्यौ है । -
अकसिणपवत्तयाणं विरयाविरयाण एस खलु जुत्तो। संसारपयणुकरणे दव्वय एक्कव दिटुंतो ॥१॥
एस त्ति जिनगृहनिर्माणादिद्रव्यपूजाविधिरित्यर्थः । आवश्यकनियुक्तिमें तथा चूर्णिमें वग्गुरसेश्री महावीरस्वामीजी विद्यमान थकां श्रीमल्लिनाथजीको देहरौ पड गयो थो, उसको जीर्णोद्धार करायौ । प्रतिमाजी पूज्या । एक दिन पुरमतालनगर (बा)हिर वीरस्वामी छद्मस्थपणे काउसग्ग रह्या । ईशानेन्द्र बांदण आयो । वग्गुरसेठ बगीचैमै जिनपूजा करण जातौ थौ । भगवानकी खबर नही पडी । पास हुय नीकल्यौ । तव ईशानेंद्र कह्यौ, 'अहो ! वग्गुर ! तुझकुं प्रत्यक्ष तीर्थंकर दिखाउं । प्रथम ईणांकी भक्ति महिमा करकै पछै प्रतिमाजी पूजजे ।' जैसा इंद्रका वचन सुणकै प्रथम वीरस्वामीजीकी महिमा करकै पीछे प्रतिमाजी पूज्या । तिणकौ पाठ संक्षेप लिखे हैं -
तत्तो य पुरिमताले वग्गुर ईसाण अच्चए पडिमा ।
मल्लिजिणाण य पडिमा उण्णाए तंतु बहुमुठ्ठी ॥१॥
इसकौ अर्थ चूर्णिकार श्रीदेवर्द्धिगणि क्षमाश्रमणे(?) विस्तारसें कियो है। तिणकौ भावार्थ तौ इहा लिख दीयो है। पाठ बहुत है, तिणसै नही लिख्यौ है । तथा आवश्यकनियुक्तिमैं अष्टापदतीर्थ उपर भरतचक्रवर्ति २४ भगवानको करायौ, भाया का धुंभ कराया, जैसो अधिकार है । सो पाठ लिखै है -
थूभसय भाउआणं चाउवीसं च जिणहरे कासीं। सव्वजिणाणं पडिमा वण्णपमाणेहिं नियएहिं ॥१॥

Page Navigation
1 ... 330 331 332 333 334 335 336 337 338