Book Title: Anusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 335
________________ सप्टेम्बर - २०१८ ३२५ हजार परिवारसे मुक्ति गया। सेलगजी ५०० साधु साथे अरु पांच पांडव प्रमुख मुक्ति गए । इत्यादिक अधिकार ज्ञातासुत्रप्रमुखसे प्रगट पाठ है। शेजै महातममैं विस्तारसैं है। सो जाणोगे । तथा अनुयोगद्वारसुत्र मध्ये भावश्रुते निश्चे निक्षेपाधिकारें 'महिय पूइय' शब्दें करी समवसरणमें विराजमान भावजिन सुर असुर नर विद्याधरे भावें तथा द्रव्य पूज्या कह्या है । सो पाठ लिखें है । ‘से किं तं लोगुत्तरियं नोआगमओ भावसुयं ? - जं इमं अरिहंतेहिं भगवंतेहिं उप्पन्न[ना]ण दंसणधरेहि तीयपडुप्पन्नमणागय जाणएहिं तेलोक्कमहियेहिं [सव्वन्नूहि] सव्वदरिसीहिं पणीयं दुवालसंगं गणिपिडगमित्यादि ।' इसको अर्थ विस्तारें टीकासें जाणज्यो । तथा खंधेकजीके अधिकारै 'हियाए सुहाए' इत्यादि पाठ सुरियाभके पूजाफलपाठसैं मिलाय कैजो । ढुंढियौ इह भवको फल कहै है सो महामूर्ख दीसै है। उ दृष्टांत इहा कुछ भी मिलै नही । धनसें तौ इहभवका फल हित-सुखादिक प्रगट दीसै है। अरु पूजासें सूरियाभदेवताकुं इहभवको फल हित-सुखादि कह्या हुवो फेर ढुंढियाके मतसे देखीजे तब तौं पूजाका फल हित-सुखादिक संभवै ई कोई नही। पूजाकुं तो पापरूप कहै है । पापसें हित-सुख कहा से होगा? । इस वास्तै इहभवका फल कहे सो वात सर्वथा झूठी कहै है । अरु भगवानकै मतसे देखीजै तव पूजासें इहभवमांहें सुद्ध परिणामकै जोगसें शुभकर्मको बंध, अशुभकर्मकी निर्जरा यह फल है । सो हित-सुख्यादिकको कारण है । परभवमांहै सुखकीबोधिबीजकी प्राप्ति परागे मोक्षनी प्राप्ति फल है। निःश्रेयसं नाम मोक्षक ही ज। शास्त्रमें ओर अर्थ नही । खंधैजीके अधिकारे धनको दृष्टांत कह्यौ है । तिहां पिण मोक्षको अर्थ है। मोक्षका निक्षेपांके अधिकारें द्रव्यमोक्ष-१ भावमोक्ष-२ कह्या है। तिहां द्रव्यमोक्ष ऋण-भोक्षादिक जाणवो । भावमोक्ष सर्वकर्मक्षय रूप जाणो । तिहां खंधैजीके अधिकारे गृहस्थकुं धनसें मोक्ष कह्यो है । सुरियाभकुं पूजासें भवांतरे भावमोक्ष कह्यौ है। इस तरै सर्व जगग(ह) मोक्षको अर्थ जाणज्यो। फेर कुमती कहै, "सुरियाभकै अधिकारै पेच्च शब्द न कह्यौ तिणसे हुं इहभवको अर्थ करूं छु ।" तिणकुं जैसा कहणा, पेच्चा शब्दको निश्चय कोई नही। कहा ई होय कहां ई न होय । जो ते निश्चय कहेगो तो ठाणांगसुत्रमांहे तीर्जें ठांणे चउथे उदेसे साधूके पंचमहाव्रतादि पालणेका फल 'हिएओ सुहाए' इत्यादिक

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