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सप्टेम्बर
२०१८
आयंसघरपवेसो भरहे पडणं च अंगुलीयस्स ।
साणं तुम्मुयणं संवेगो नाण दिक्खा य ॥२॥ इत्यादि ॥
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तथा श्रीगौतमस्वामी अष्टापदपर्वत चड्या, जिनप्रतिमा वांदी । पनरैसै तीन तापस प्रतिबोध्या । ए अधिकार दसवैकालिकनिर्युक्तिप्रमुख सुत्रांमें है । उहांको संक्षेपें पाठ लिखे हे -
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सोऊण तं भगवओ गच्छइ तहिं गोयमो पहियकित्ती ।
आरुहई अ नगवरं पडिमाओ वंदइ जिणाणं ॥ १ ॥ इत्यादि । श्री भगवतीसुत्रमें 'चिरपरिचिओसि गोयमा' इत्यादिक पाठमै पिण ए अधिकार सूचव्यौ है । टीकाकारजी खोलकै लिख्यौ है । सो अधिकार बहुत 1 है I तसैं नही लिख्यौ है ।
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तथा जिनप्रतिमा जिनसारखीको अधिकार ठाम ठाम है, सो लिखे है - रायपसेणीसुत्र मध्ये सुरियाभदेवता एकावतारी समकिती श्रावक जिनप्रतिमा पूजी तिहां 'धूवं दाऊण जिनवराणं' असो पाठ है । गणधरदेवजी जिनप्रतिमाकुं जिनवर कहि बोलाया तब जिनप्रतिमा जिन सरिखी हुई नही ?, विचार जोज्यो । तथा ऊवाईसुत्र मध्ये तीर्थंकर वांद्याकौ फल- 'हियाए सुहाए खमाए निस्सेयस्साए आणुगामिअत्ताए भविस्सई' औसो कह्यो है । यो ही ज फल रायप्पसेणी मध्ये प्रतिमा पूज्याकौ कह्यौ । तब जिनप्रतिमा जिनसारखी क्युं नही ? | तथा ज्ञातासुत्रमध्ये द्रूपदीके अधिकारैं 'जेणेंव जिणघरै तेणेव उवागच्छइ' - असो पाठ है । इसको अर्थ विचारज्यौ । जिन कहियै तीर्थंकर, तिणांकौ घर कहियै मंदिर अर्थात् देहरौ तिहां जायै । उस मंदिरमै भगवान तौ नही बैठे है, प्रतिमाजी है । तिणकुं सुत्रकारजी जिनघर कह्यौ । जिनप्रतिमा जिनसारखी न हुवै तो जिणहर क्युं कहै ? मृषावाददोष लागै ।
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तथा भगवतीसुत्रमध्ये चमरेन्द्रकै अधिकारैं तीन शरना कह्या । अरिहंतजीका - १, अरिहंतप्रतिमाजीका - २, भावितात्मा साधूजी का - ३ । अरु आसातना २ ही । अरिहंतजीकी - १ अरु साधूजी - २ । जिनप्रतिमा जिनसारखी है । तिणसें जिनप्रतिमाकी आसातना सो जिनकी आसातना है । इस वास्तै २ गिणी है । श्रीभगवतीसुत्रकै संक्षेपैं पाठ लिखे है ।
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