Book Title: Anusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान-७५(२)
तेंने श्रीमहावीरस्वामीजीके दोय शिष्य तेजोलेश्यासें जलाए, तथा महावीरस्वामी सन्मुख तेजोलेस्या मुंकी । सौ उवै महाक्षमावंत थे। अपराध सह्या । परं मेरे (कुं) नही सह्या जाय । में तपतेजसें जलायकै भस्म कर दूंगा । इतना कह्यां पीछे फेर उपसर्ग करैगा । तव साधु तेजोलेस्यासें रथादि सहित राजाकुं बाल भस्म करेंगे । आप एकावतारीपणे सर्वार्थसिद्धविमान उपजैगे। जैसा श्रीभगवतीसुत्रमें १५ शतके पाठ है।
तथा श्रीभगवतीसुत्रजीकै बारमें शतकें नवमै उदेसें साधुकै वैक्रियलब्धि फोरवणेको अधिकार है । सो पाठ लिखत है -
_ 'भवियदव्वदेवाणं भंते ! किं एगत्तं पहू विउव्वित्तए ? पुहुत्तं पि पभू विउव्वित्तए ? । एगो० एगत्तंपि पभू विउव्वित्तए । पुहत्तंपि पभू विउव्वित्तए । एगत्तं विउव्वमाणे एगिदियरूवं जाव पंचिदियरूवं वा । पुहत्तं विउव्वमाणे एगिदियरूवाणि वा जाव पंचिंदियरूवाणि वा। ताई संखिज्जाणि वा असंखिज्जाणि वा, संबद्धाणि वा असंबद्धाणि वा, सरिसाणि वा असरिसाणि वा विउव्वित्तए । विउव्वित्ता तओ पच्छा अप्पणो जहिच्छियाई कज्जाइं करेति । एवं नरदेवावि धम्मदेवावि । देवाहिदेवाणं पुच्छा । गो० एगत्तंपि पभू विउव्वित्तए पुहत्तंपि प(भू) विउ(व्वि)त्तए नो चेव णं संपत्तीए विउव्विसु वा । विउव्वंत्ति वा विउव्विस्संति वा। भावदेवाणं पुच्छा, जहा भवियदव्वदेवाणं ।' इत्यादि ।
. इहां पिन साधु वैक्रियलब्धि फोरवी मन चाह्या काम करै । ए प्रगट पाठ है। तथा भगवतीसूत्रमें जंघाचारण विद्याचारण साधूकै प्रगट लब्धि फोरणैको पाठ है। जैसे पन्नवना उपंगमें साधू आहारकलब्धि फोरवै । एक भवे २ वार सर्व भवें ४ वार जैसा प्रगट पाठ है। तिणसें साधु लब्धि [न] फोरवै जैसी वात कहै, सो बहुत झूठा है । कारण फोरवै । भगवांन पधारै तब देवता त्रिगडो रचै, ए अधिकार आवश्यकमें विस्तारसैं है । सो पाठ लिखें है :
'जत्थ अपुव्वोसरणं, जत्थ व देवो महिड्डिओ एति । वाउदयपुप्फवद्दलपागारतियं च अभिओगा ॥१॥ मणि-कणग-रयणचित्तं भूमीभागं समंतओ सुरेहिं । आजोयणंतरेणं, करेंति देवा विचित्तं तु ॥२॥

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