Book Title: Anusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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सप्टेम्बर २०१८
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अन्य देवी-देवता प्रमुख सबकी पूजाकौ पच्चक्खाण कियौ है । देव-देवी कुं पूजते है सहायकै वास्तौ, उवै तिणहीकौ सहाय नही चाहते हैं । सुत्रमें 'असहिज' सो पाठ है।
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तथा उपासकदसा-सातमें अंगमें आनंदश्रावक समकित उचर्यो । तिहां अन्यमतीग्रही अरिहंत प्रतिमा वांदवी पूजवी निषेधी । तव अन्यमती न ग्रही जिनप्रतिमा वांदवा पूजवा योग्य ठहरी । औरौं उववाई उपांगमें अंबड श्रावककौ अलावौ पिण जाणौ । तथा रायपसेणीसुत्रमें सुद्ध समकिती एकावतारी सुरियाभदेव जिनप्रतिमां जल चंदन फूल धूप प्रमुखसे पूजी । उसका फल हित, सुख, मोक्ष सुत्रमे वखाण्या। औसै जीवाभिगमसुत्रमें विजयदेव पूजा करी
तथा द्रूपदी श्रीज्ञातासुत्रजीमें जिनप्रतिमा पूजी । जो अज्ञानी कदाग्रही द्रूपदीकुं मिथ्याती कहै, सो आप मिथ्याती है । भगवानके वचने द्रूपदी प्रगट समकितवंत थी । सुत्रमें प्रगट पांठ है। पूजा करकै नमोत्थुणं इत्यादिक शक्रस्तव कह्यौ । मिथ्याती होय तौ भावसें विधिपूर्वक जिनपूजा किस वास्तै करे ? 1 नमोत्थुणं किस वास्तै कहै ? | अन्यदेव पूजौ, अन्य देवकौ स्तुति करै ? तथा परण्यां पछै नारदऋषि देखणैकुं आया तव नारदकुं असंजत-अविरती जानकै वंदना - नमस्कार न कियौ । औसा सुत्रवचन उत्थापकर शुद्ध समकितवंत द्रूपदी श्राविकाकुं आपणौ मिथ्यामत थापणैकुं आपणै मुखसैं मिथ्यात्विणी ठहराय दैवै । औसा दुष्ट महापापी पाखंडियांकौ मुख देख्यां पाप लागै । औसा पाप्यांका वचन जे प्राणी अंगीकार करै तिणां बापडांका बहुत बुरा हाल होगा। घणा नरक निगोदका दुःख पावैंगें । उणां जीवां उपर बहुत करूणा आवती है।
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तथा उत्थापक कहै; 'साधु लब्धि फोरवै नही ।' सो मृषावादी है । जिनकल्पी साधु नही फोरवै । थिवरकल्पी साधु कोई कारणें लब्धि फोरवै, सो अधिकार श्री भगवतीसुत्रमें ठाम ठाम है। भगवान श्री महावीरस्वामीजी कल्पातीत थे । उणां भी दयाकै कारण लब्धि फोरवी सीतलेस्या मुंकी गोशालैनैं जलतैकुं बचायौ । ए अधिकार श्रीभगवतीजी सुत्रकै पनरमैं शतकें गोशालेकै अधिकारैं प्रगट पाठ है । तथा उहा ही ज कह्या है, सुमंगल साधुकुं गोशालैका जीव विमलवाहनराजा हुयकै उपसर्ग करैगा । तव साधु क्षमा करेंगे। फेर दूजी वेर उपसर्ग करै तव साधु ज्ञानोपयोगसें गोशालैका जीव जाण कैहैगे, अरे ! गोसाला !

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