Book Title: Anusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 327
________________ सप्टेम्बर - २०१८ कुमती उथापण चरचा लिख्यते ॥ 1 मनोमती झूठी प्ररूपणा [क] है । तिणकौ मत दूर करणैकुं जैनमती कहै है । ढुंढियो कहै, 'हुं बत्तीस आगम मानु, और आगम न मानुं ।' सो प्रत्यक्ष मृषावादी है, जिनआज्ञाकौ उत्थापक है । इन कालेँ वर्त्तमांन पैतालीस आगम जो न मांनैं, तिरौं बत्तीस भी न मांन्या । फेर जो चउद पूर्वधारी श्रुतकेवली युगप्रधान गुरु श्री भद्रबाहुस्वामीकृत निर्युक्तिप्रमुख ग्रंथ न मानें, तिर्णै बत्तीस भी न मांन्या । उसकुं पूछणा, 'तुझकुं कैसा ज्ञान उपज्या जिणसैं ते बत्तीस साचा जाण्या ?, और झूठा जाण्या ?' तब ऊ कहै, 'म्हारी सरधासु बत्तीस मिलै, सो मानुं और न मानुं ।' तब उसकुं कहणा, 'तैं मनोमती है। जैनमती ही ज नही । तेरी संगति करणैवाला बापडा असमझ जीव घणुं संसारमै रडबडैगा । तै कहता है मै बत्तीस मानुं । बत्तीसामांहै तो नंदीसूत्र भी गिण्या है । अरु नंदीसूत्रमांहें प्रायें पैतालीसांका भी नाम लिख्या है । सो तै उत्थाप्या । तब नंदीसूत्र भी उत्थाप्यौ । तब बत्तीस तैं कहां मांन्या?। तैं प्रत्यक्ष मृषावादी ठहर्या कै सत्यवादी ठहर्या ? । फेर नंदीसूत्रमांहे चउद पूर्वधारी श्रुतकेवलीका वचन सुत्र कह्या । मानवा योग्य कह्या । अरु तें निर्युक्ति प्रमुख श्रुतकेवलीका वचन प्रायें सब उत्थाप्या तब तैं नंदीश्रु (सूत्र कहां मांन्यौ !' तथा श्रीभगवतीसुत्रै २५ में शतकें ३ उद्देशें 1 - ३१७ सुत्तत्थो खलु पढमो बीओ निज्जुत्ति मि (मी) सिओ भणिओ । तइयो य निरवसेसो एस विही होई अणुओगे ॥१॥ 1 इत्यादि कह्यौ है | अरु नंदी अनुयोगद्वार मैं पिण ए पाठ है । तिहां निर्युक्ति प्रमुख सब उत्थाप्या । तब तैं भगवती, अनुयोगद्वार भी उत्थाप्या । इस वास्तैं तैं कहता है, मैं बत्तीस मानु सो बात मिथ्या है। जो बत्तीस मानैंगा सौ वै पैतालीसेई मांनेगा, अरु निर्युक्ति प्रमुख भी मानेंगा । ए वातमे संदेह नही । निश्चय कर जाणा । समकित होय सो समदृष्टियें विचारजिज्यो । तथा ढुंढियो कहै, 'प्रतिमामें भगवांनपणौ कहां है ? कि पूज्या ?' इसको उत्तर लिखै हैं। ‘“प्रतिमाजीमें साक्षात् भगवानपणौ नही है । परं भगवांनकी थापना है । च्यार निक्षेपा अनुयोगद्वार प्रमुख सुत्रमें कह्या है । नाम निक्षेपौ - १, थापना निक्षेपौ-२, द्रव्य निक्षेपौ - ३, भाव निक्षेपो - ४ । तथा ठाणांगादि सुत्रमांहे

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