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अनुसन्धान-७५(२)
दीइ नही पर पुरुषनें, हाथोहाथें ताली रे लाज तजीने कहि कइस्युं, न करइ वात वेधाली रे २ कु० परम नेहें पर पुरुषस्युं, मिटइ मिट न जोडइ रे आखो दिन घर बारणइ, ऊभी अंग न मोडइ रे ३ कु० रूप न जूइ पुरुषनां, मुख अंग करइडि वलांकइ रे कामदीपइ जोतां जिणि, परस्युं होडि न पांकइ रे ४ कु० पति गामांतर गई छतइ, वेष विशेष न वांछइ रे पति पहिली जिमें नही, पहिली न सूइ मांचइ रे ५ कु० दूतिकर्म जे आचरइ, हीणी जाति नारीनी रे तेहस्युं मिलq नवि करइ, जेह द्यइ मति जारीनी रे ६ कु० अणढांक्यइ अंग आपणइ, जिमतिम किहांइ न बइसइ रे एकलो पुरुष जिहां धरइ, प्रायें तिहां न पइसइ रे ७ कु० पर अजाडी नवि पडइ, स्त्री जाति हुइ शाणी रे कष्ट पडइ पणि आपणुं, राखइ शीलनुं पांणी रे ८ कु० अति आसक्त भोगें नही, पति अनुकुलइ चालइ रे हाथबली हुइ नही, दान गुणिं करी मालइ रे ९ कु० पति वश्य हुइ जो आपणो, तउ परवें व्रत पालइ रे मूल नक्षत्र कुयोग जे, भोगटांणइ संभालइ रे १० कु० लोभाइ नही लालचई, को धइ नांणुं लाखो रे शीलव्रत मुंकइ नही, धरें धरमें अभिलाषो रे ११ कु० चपल नयण चाला तजइ, हिंडती अंग न भाजइ रे वेधक बोल वाले नही, हास्य कर्यां जे लाजइ रे १२ कु० एकांते कोई पुरुषस्युं, न करइ वात न हासी रे । उंचइ मुढइ न बोलती, लोकमें लहइ स्याबासी रे १३ जेठादीक अणजाणतइ, व्रतभंग होइ बिहूनां रे तिणिं पर मांचइ नवि सूइ, निद्राइं जन शूनां रे १४ कु० जे नामें संकट टलइ, सोल सति जगि सारी रे वात कथा करइ तेहनी, शील संबंध उदेरी रे
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