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सप्टेम्बर २०१८
आई दीवारी कहे नर नारीके राजुर प्यारीको अंग दह्यो है, केशवबंधव हेत करो कछु राजसुता घन दुःख सह्यो हे.
मास मगसर वास धरे सुधरे तनुं तेज सनेज सवायो, उपत चिर अनंग समी प्रभ दिप तरंग सही सुख पायो; लाल प्रवाल जड्यो अंग राजुल प्रीतको संगत कुं चित लायो, सितको मास भयो प्रगट्यो अब नेम विना कछु दाय न आयो. ५
प्रगट्यो पोष मास भई ईकलाश जगी मन आस सदे जनकी, अती लाल कथी पजरी सबसे जस हे जय ल्यंगदनी गुनकी; सुख तेल फुलेलकी खोल रचै विरचे सब पीर सही तनकी, ईह भोगीय मास भयो नेम झुरण राजुल वात कही मनकी.
माह सौं मोह जग्यो सुं जग्यो हम नेम सुं प्रेम लग्यो मन मांहे, पीरत काम घटा विरहाजुर राजुर नेम देवे दुख काहें; राजसुता करजोर कहे आली वेदन मेंणकी में न सहाहे, नेम उलास मिले ईस मास जौ आस फरे मेरी अंग उबाहे.
फागण राग रमे नरनागर जागर कीड सबे मन भावे, लाल गुलाल अबिर उडारत चंग मृदंग सुरंग जवावे; ताल कंसाल रसाल सदा डफ बाजत, पूष्प विरेप मलावे, होरी खेलत हे सब यादव राजुल नारी कछु न सुहावे.
मास वसंत भयो प्रगट्यो अब फुल सफुल करी वनराई, सार गुंजार करे वन भुंग धरी मन रंग सतेज सवायी; अंग सुरंग बनाय विभुषण कामीण प्रीतम के चित आयी, तको चेत करो यदु साहीब राजुल प्रीत करो चित लाई.
मास वैशाख भई बड शाख लगे अंब मोर बन्यो भर जोबन, कोकील शोर करे सुघरी मकरी गिर देख मोहे सब को जन; खेलत लोक सबेहिं हसी पीया कोक पढें रत अंगको सोवन, लाज न आवत हे यदुनंदन जांनहुं नेम भयो है विगोवन.
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