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अनुसन्धान-७५(२)
वसती सूध तिहां किण वशइं, स्त्री पसू पंडग पलगा हो, पहिलि वाडि अह कहेंवाणि, पाप तेहथी रहें अलगा हो. ये० ५ बीजी वाडि हवें ते जाणो, स्त्री विकथा परिहरिइं हो, देखी स्वरुप चित नवी चलीइं, जिणवर आणा शिर वहीइं हो. ये० ६ त्रीजीनो हवें अर्थ विचारो, बे जण अक सिज्झा नवि बेंसई हो, ब्रह्मचारि इंद्री नवी जोवे, वाडि चोथी कही असी हो. घे० ७ पांचमी वाडें वासो न करें, निसूणो परिअछि अंतरि हो, छट्ठिनो अधिकार जाणो, पूव्व क्रिडा निषेधोभ्यंतर हो. ये० ८ सातमी न करई सरस आहार, जेहथी दीपइं काम विकार ज हो, आठमीइं अति उंणा रहइंq, लेखें करवो आहार ज हो. ये० ९ नावण धोवण तन सिणगार, वाड कहि नोमि असि विचार हो, योवनवाणि अर्थ प्रकासई, बुझबुझ चित्त विचार हो. ये० १० शीलें उर्यो मदनकुमार, बोल्लई इंम त्रिसलानंदन हो, चतुरसागर कहें बीजी ढालें, शील पालें जे नर वंदन हो. ये० ११
दुहा भंभसार राजा तिहां, पूड़ें बैं कर जोड, मदनकुमर कुण थओ, कहो प्रभु मूझ मन कोड... १ कवण ज्ञाति कवण नर, कवण गाम कुंण देस, शील पाल्यु किण विधई, प्रबंध कहो लवलेस... सिद्धारथ सूत उपदिशें, कृपा करी जगनाथ, छांडि प्रमाद तुम्हे सूणौ, निद्रा विकथा साथ... कासिदेस वाणारसी, नगरी अति अभिराम, कोसिशां मंदिर झिगमिगे, उछो कोटि लही आराम... ४ पवन छत्रीसी तिहां किण, वसई वसे उच निच ज्ञाति, कुलमर्याद नवी चलें, न करे केहनि वाति... ५
ढाल - ३ रंग रमतो राजीओ - ए देशी कासि वणारसी अधिपति, अधिपति अजीतसेन राजान, नरेसर सांभलो, चालें न्याय कदाग्रही, कदाग्रही बुद्धिसार जेहने प्रधान. न०