Book Title: Anusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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सप्टेम्बर - २०१८
२८९
दुहा
राजग्रही रलीआमणि, अधिपति श्रेणिक नरेस, ख्या(क्षा)यक समकितनो धणि, तिर्थंकर पद लहेस... १ भंभसार सूत अती सुंदरु, नामें अभयकुमार, मंत्रीसर पिण जाणयो, च्यार बुद्धीनो भरतार... बहुली राणि तेहनें, गणतां नावें पार, रति परें ओपें चेलणसू, नीजरस्युं रायनूं मान... दैगंधीक परि सूख भोगवे, मोहन खेलें निसदिस, प्रजा उपरि हित घणो, न करें प्रजानें रीस... ओक दिन सभा बेठा थका, वनपालक आव्यो ताम, वीर जिणंद समोसरा, उद्यान राजग्रही गांम... वनपालक दीधी वधामणी, तेहनें आपें लाख पसाय, चतुरंगि सेना सज करी, वंदन चाल्यो राय... श्रेणिक नृपवर सिंहलो, कहें भेटिस हर्षे आज, कर्णकचोला पावन करूं, तरवा भवोदधी पाज... त्रिगडु रच्यू छै तिहां किण, त्रिण प्रदक्षण देह, पांच अभिगमन साचवी बेसें, निर्विकथा निकता जेह... ८ मधुरि भाषा उपदिशें, बेंठी परषदा बार, धर्म करो तुमे प्राणिया, जिम उघडे मुक्तिना द्वार... ९
ढाल ये उपदेस मधुरी भाषा, बेंठी परषद आगे हो, दुल्लभ मानव अवतार, धर्म करो तुम्हें रागें हो... घे० १ तन धन यौवन अथीर, संसार सूहिणा परि प्रेम हो, आयु डाभ अणि जलबिंदु, चित छेतो नर चढो नमें(?) हो. ये० २ च्यार प्रकारें धर्म प्रकासई, दान शीयल तप भावन हो, तो पिण नववाडि शीयल वखाणु, धर्मे शील प्रधान हो. ये० ३ तव गौतम फीर फीरनें पू0, सांभलवा मन कोडि हो, नववाडि केहनें कहीइं, श्रेणीक सूणी बे कर जोडि हो. ये० ४

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