Book Title: Anusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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सप्टेम्बर - २०१८
२८३
हरिठा उरतूं प्रीति रति जोरहीं, बुरी परी जो पीठ दीठकों झोरही जनम जनमके दास जाय कहां भाग रे, अति अग्निको ज्यों सिरावै आग रे ॥९७॥ अकै तो तब ओक न दूजा जांणही, कररी पकर कमांन तीरकू ताणही जो जीव जाय तो जाय डरै नहीं नाथसं, भंवर बंध्यो बाजिंद फूलकी बाससू॥९८॥ घनि घनि कनिक है सकै क्यों बोलकै, जांणे सकल जिहांन लिये है मोलकै जद्यपिजीन बाजिंद खसम बहो गोदही, तदपि पीवके पांव जीवनही छोडहीं ॥१९॥
और ठोर क्यों जाय सनेही रांमके, देख्या फटक पिठोर जगत कहां कांमके। जिती कदे ई दीठा न सीस परि ओढही, पीव अपणके पांव जीव क्यों छोडही ॥१००॥ दर गहै वडी दीवांण आईयै छेह जी, जे सिर करवत देई तो कीजै नेह जी दर तें दूर न होय दरका हैरके, जांन राई जगदीश नवाजै कैरके ॥१०१॥
॥ इति बाजिंद शतक ॥ लि. शामळानंद ॥ वटपत्र पत्तने ॥
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