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अनुसन्धान-७५(२)
कुंजर कीरि आदि सबनसूं हेत है, हिरदै उपज्यो ग्यांन दुःख क्युं देत है मुख होत मीठ अने सो बोलहीं, अन साधनके साथ नाथ ज्यों डोलहीं ॥८४॥ राजा राणा राव रहैत है लोय रे, नाम ले यारी साध गम नहीं कोय रे तहां न वसे बाजिंद दुहाई रांमकी, वींद विना जुवरात कहो किण कामकी ॥८५॥ सारी खेसुं साथ हाथ हाथ कहां औरतूं, बाजिंद भूख कयुं जाय चूनकी कोरसूं साधन कै भूख आय जु अंन्न सिंचई, दिन है रहै दिखाय दुनिसुं भिंचई ॥८६।। साधां सेती वेर लगे तो लाईये, जो घर रहो वैडूर अंधेरे हि आईये। जे जिन मूरख जांण जीवतो नां डरै, सब कारय सिध होय कृपा जो वै करे ।।८७।।
॥ पतिव्रताको अंग ॥ छांडि अपणो पीव जीव दियै औरकों, प्रापति हे पुनि जाय बुरी ही ठोरकों बेगाना बाजिंद पगन सुं पेलियै, हार जीत दोउ खूब खसम सौं खेलिये ॥८८॥ आवेंगे किहां काम पराई पोरके, मोती जरबर जाव न लीजै औरके पर पाईये बाजिंद चूवै किन नाथको, पांनाडीको चीर नाथके हाथको ॥८९|| कररां हाथ कमांण साधही तीर रे, दास रहै दरबार रैन दिन वीर रे जीवणहारो कोय भया अंत भालकी, मंद सोही तूं जाण गरद है गैलकी ॥९०॥ जूठ पगन सूंठेल सांच कर गहत है, दास पीयके पास रैंन दिन रहत है बंधे और ही ठौर कहावे रांमके, सती विना जुं सूड कहो किन कांमके ॥९१।। गहेवौ छांडो नाथ हाथ अह लोय रे, विना पीव जो जीव सरै नहीं कोय रे चरन कंवलके ध्यान रेंन दिन धरंगे, और फौर बाजिंद कहो क्यों करंगे ॥९२।। ते पाछी बाजिंद जगतमें और है, जे न निबाहो नेह बंधे बहो ठोर है कंवल कहो कहां जाय नीरको छांडिकै, जीवण मरण जूं साथ रहो पग मांडिकै॥९३।। भूखे भोजन देह उघारे कप्पडा, खाय खसमके लोण जाये कहां बप्पडा भली बूरी बाजिंद सबही सहेंगे, दरगाहको जे गुलाम गरद होय रहेंगे ॥९॥ दूर न जाये मूर रहै पग झाडिकै, तन तें हारको होय धणीकुं छांडिकै काल वजावहै गाल आपणे दाससुं, हाथ विकावै नाथ जाय कयुं पाससुं ॥९५।। पीव अपने कीयो जास्यु गाढी पक्करी, गरबै नतो गुमांन लगै कन लक्करी नाथ हाथकी मार मांहि माहि खायगे, खानांजाद गुलांम कहो कहां जायगे ॥९६।।