Book Title: Anusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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केशवदास कृत
- राजुल बारहमासा
नेम -
अनुसन्धान- ७५ (२)
सं. - निरंजन राज्यगुरु
जैन गुर्जर कविओ - संवर्धित आवृत्ति भाग ५, पृ. २१ उपर खरतरगच्छनी जिनभद्र शाखाना लावण्यरत्नशिष्य केशवदास उर्फे कुशलसागरनी 'केशव बावनी / मातृका बावनी', 'शीतकारके सवैया' अने 'वीरभाण उदयभाण रास' नोंधायेला छे. अहीं अपायेल कृति शक्यतः अप्रकाशित होवा सम्भव छे. जे वि.सं. १७३४मां श्रावण शुक्ल नवमीना दिवसे रचायेली छे. लावण्यविजयसूरि ज्ञानमन्दिर बोटादमां सचवायेली हस्तप्रतनी पू. आचार्य श्री विजयशीलचन्द्रसूरिजी म.सा. तरफथी सांपडेली झेरोक्स नकलमांथी आ सम्पादन कर्तुं छे.
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घन घोर घटा उमटी विकटा भ्रुगुटा द्रग देखत ही सूख पायो, विजुरी चमकंत सूकंत शही फूंनि भू रमणी उर हार बनायो; भर मोर झिंगोर करे वनमें घनमें रति चोर को ते जश वायो, सुख मास भयो भर यौवन श्रावण राजुल के मन नेम सुहायो १
सरसागर नीर निवाण भरे सुधरी धर धीरत कीरतीयां,
भर डंबर हि सुख अंबर गाजत लाजत सागर की छतियां; ईह भाद्र मास लगे सुख प्यास सदा पिउं ध्यान धरे सतीयां, हम आस निराश करो मत यादव राजुल नारि कहे बतीयां. आसु में आस फरे सबहि जब नेंमहि जाल मिले रंगणारे, ज्युं सीप चाहत हे जल बुंदकुं नेमकी चाह करे सुं पियारे; पुनिम चंद झरे नित अमृत राजुल नारी लगे सब खारे, चंदकुं देख हसे ईक पोयण नेम सुं चंद सबे सुख कारे. कातिग मास फरी धन रास के आस निवास को वास कर्यो हे, हार शृंगार बनाय मनाय सुं कामिन कंत सौ प्रेम गह्यो हे;
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