Book Title: Anusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान-७५(२)
पासेथी मळतां आश्चर्य थाय ओवी अमनी निरीक्षण शक्ति जोवा मळे छे. अञ्जनानी उपेक्षा – त्याग ज - अने तेथी उद्भवेली तेनां अन्तरनी वेदना सादी पण हृदयस्पर्शी रीतिथी निरुपाई छे ! बीजा खण्डमां लङ्काना अधिपति राजा रावण अने पछी युद्ध माटे शस्त्रो वगेरेनां वर्णन खूब चोक्कसाई निर्देशे छे. पवनञ्जय अवगणीने युद्धमा जतां अञ्जना अने तेनी दासी वच्चेना संवादमां उपमा, दृष्टान्त अने रूपक अलङ्कारोनो उचित विनियोग छे. अञ्जनानी गर्भावस्था दरमियाननी तेना देहाकृति अने गति-विधिनुं वर्णन आबेहूब कर्यु छे ! वन- वर्णन अने अतिसंतप्त, विरहथी व्यथित, छतां समताधारी अञ्जनानुं चित्र नजर समक्ष आवे ओ रीते निरूपायुं छे - आस्वाद्य बने छे.
____ काव्यात्मकतानी दृष्टिले कृति आगळ पडती छे के नोंधपात्र छे एम कही शकातुं नथी. परन्तु सामाजिक-सांस्कृतिक परिस्थिति, तत्कालीन समाजसन्दर्भ अने लोकाचारना निरूपणनी दृष्टि रचना विशेष ध्यान खेंचे छ; अमां अनुं मूल्य छे. भावनिरूपणमां पण कविनी प्रतिभानो परिचय मळे छे. जैनधर्मनी सैद्धान्तिक तेम ज तात्त्विक लाक्षणिकताओने कथाना प्रवाह अने वर्णनोनी वच्चे वच्चे समुचितपणे वणी लीधी छे ते कविनी उपलब्धि छे!
एक विशेषता ए छे के घणी ढाळोना जे राग के देशी लख्या छे, तेनो निर्देश जे ते ढाळनी छेल्ली कडीमा नाम लईने कविए कर्यो छे. आq भाग्ये ज बीजे जोवा मळे.
अञ्जनासुन्दरी पवनञ्जय रास - खण्ड-१ श्री गौतम गणधर प्रमुख अकादश अभिराम मन वंछित सुख संपजइ नित समरंतां नाम 'प्रथम उद्यम मई मांडीउ मति दीसइ अति मंद तिण कारणि पहिला नमउं श्री गणधर सुखकंद सरसति पद पंकज सदा पूनुं बे कर जोडि कहण कथा उजम घणउ, मा तम आंणे खोडि सेवकनइं सांनिधि करी देये अविरल वाणि जिम वेगउ सिधिं चढई काई म राखिसि काणि वली प्रणमुं सद्गुरु वडा जिणथी थयो सनाथ
पाप पडल पाछा कर्यां सूत्र शास्त्र दे हाथ १. कर्तानी आ पहेली ज रचना होवानो अहीं संकेत मळे छे.

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