Book Title: Anusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 284
________________ २७४ अनुसन्धान-७५(२) 'बाजिंद विलास' - ओक वैराग्यबोधनी रचना सं. - निरंजन राज्यगुरु ___ घणां वर्षो पहेलां पू. आचार्यश्री विजयशीलचन्द्रसूरिजी म.सा.ने मळवा वढवाण गयेलो त्यारे अमणे पोतानी पासे सचवायेला केटलांक हस्तप्रतोनी झेरोक्स नकलोनां पानांओ आपेलां. अमांथी 'अनुसन्धान ना २००५ ना अंक ३२मां उदयरत्नजी कृत 'जोगमायानो सलोको' प्रकाशित थयेलो. त्यारबाद खम्भातथी पण केटलांक झेरोक्स नकलोनां पानांओ मने आपेलां अने अमांथी 'गूढार्थ दुहाओ अने अन्य सामग्री' नामे लेख २०१०ना अंक ५०/२मां प्रकाशित थयो. हजु केटलांक छूटां पत्रोनी झेरोक्स नकलो सचवाई छे अमांथी ७५मा अंक माटे आ छे नानकडी वानगी. 'बाजिंद विलास' के 'बाजिंद शतक' नामे ओळखावायेली आ रचनानी बे हस्तप्रतोनी झेरोक्स नकल परथी आ सम्पादन तैयार कर्यु छे. बन्ने हस्तप्रत नकलो चार-चार पृष्ठोनी ज छे. ओक नकलमां पूर्ण रचना छे ज्यारे बीजी नकलमां ८३ कडी सुधी ज आ रचना लखायेली छे. जेनी शरुआत अहीं आपेली वीसमी कडीथी थई छे, अटले के आगळनी ओगणीस कडी आ अपूर्ण हस्तप्रतमां नथी. पाठ बहुधा अक ज छे, पाठान्तरो नोंधी शकाय अवा कोई ज फेरफारो नथी. बन्नेमां दरेक कडीनी बीजी पंक्तिना प्रथम चरण पछी 'परि हां', 'हरि हां' शब्द गान माटे लयवर्धक लटकणियां तरीके प्रयोजायो छे जे अहीं सम्पादनमांथी काढी नांख्यो छे. समरणको अंग, कालको अंग, उपदेशको अंग, कृपणको अंग, चांणकको अंग, विसवासको अंग, साधको अंग अने पतिव्रताको अंग. अम आठ विभागोमां आ शतक वहेंचायेलुं छे. 'जैन गूर्जर कविओ' - भाग ६ पृ. ५२१ उपर आ सर्जकनी रचना 'चन्द्रायणा दुहा' नामे ३६ कडीओ नोंधाई छे जेनी सामे मुद्रितनी निशानी छे, पण अमां दर्शावेला आदि-अन्त जुदा छे. मारी पासे सचवायेली अन्य हस्तप्रतभण्डारोनी सूचिओमांथी 'बाजिंद-बाजंद-वाजंद-वाजिंद' शब्द नथी मळ्यो. हा, आपणां प्राचीन भजनोमां बल्ख बुखारानो अक शाह के जेमनुं ऊंट मरण पामतां वैराग्य जाग्यो अने फकीरी लई लीधेली ओ वात मळे छे. ('राजस्थानी साहित्यना इतिहासनी रूपरेखा' पृ. १३६ मुजब वाजिंद ओक पठाण हतो अने दादुनो शिष्य हतो, अनां १३५ जेटलां 'चान्द्रायणो' के 'अरिल्ल-अरेला' महत्त्वनां छे ओवी विगत मळे छे. आ रचनाना सर्जकनी अन्य रचनाओ तपासनो विषय छे.) मानवीनु जीवन अक समस्या छे. अक तरफ विषयोनुं सुख, सौन्दर्य अने सामर्थ्य होय छे तो बीजी तरफ परब्रह्म परमात्मा तरफ भक्तिनी लागणी. ओक तरफ छे सांसारिक उपभोगोनी दुनिया तो बीजी तरफ छे अध्यात्मनी अजायबी. ओक तरफ

Loading...

Page Navigation
1 ... 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338