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अनुसन्धान-७५(२)
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मृगपति लाजी वन गयु रे लाल
__ पेखी कटितट लंक ... सु घण थणजुगल सोहामणो रे लाल
कोई न दीसइ वंक ... सु दोई भुजा दीसई दीपती रे लाल
जिहा पंकज नालि ... सु ऊभी सोभइ आंगणइ रे लाल
लखमी आवी चालि ... सु रवि सशि कुंडल झलहलइ रे लाल
दर्पण शोभा गाल ... सु दंत सकोमल ऊजला रे लाल ।
अधर प्रवाली लाल ... सु नकवेसर नीचउ लली रे लाल
__ सेवई अधर रसांग... सु तिमिर हणइ अति ऊजली रे लाल
निलवटि अर्धमृगांग... सु नयण कमलरी उपमा रे लाल
भुं भमरी कहवाइ ... सु श्याम वेणी ढलकती रही रे लाल
कटि तटिस्युं लपटाइ ... सु जौवनभर जोरइ चढी रे लाल .
वचन अमीरस बिंद ... सु. मुख मटको देखी करी रे लाल
खीणपणउ लहइ चंद ... सु कामिणरी चौसठि कला रे लाल
तिणि सीखी ततकाल ... सु समकित सुधा श्राविका रे लाल
जीवदया प्रतिपाल ... सु
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