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सप्टेम्बर - २०१८
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धर्मनो मारग इम बहुविधि पोषीउ रे
कि बहुविधि पोषीउ रे श्री भावप्रभसूरीश्वर कहइ भवियण सुणो रे
कि भवियण सुणो रे जे करइ जिननी भक्ति सफल तेहनें गणो रे
कि सफल तेहनें गणो रे
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दूहा
विधिस्युं कर जोडी कहइ, भावई भरत नरिंद वीनतडी अवधारीइ, जगगुरु आदि जिणंद अल्पमति अह्म सारिखा, तुझ गुण पारावार । कहिवा किम समर्थ हुइ, वाणीनइ विस्तार तो पणि कांइक वीन, निजमतिनइ अणुसार सेवक सद्दहणा थकी, भक्ति वडी संसार ३
ढाल - १५ मी
ईडर आंबा आंबली रे – ए देशी आदि जिणेसर साहिबा रे, जगगुरु परमकृपाल मीठडी मूरति ताहरी रे, अतिशय रंग रसाल जिणेसर साची ताहरी सेव दलमां चाहु देव
बीजी न गमे टेव जि० टेक राग नही तुझमें रती रे, द्वेषनो नहि परजाय । कारण प्रसादजु कोपर्नु रे, तिणि तुझमें न कहाय २ जि० नृपकारज करें सेवका रे, नृप तस पूरइ लाड जगमें रीत छइ एहवी रे, ठाकुर मानइ पाड ___३ जि० पणि जगि जोतां ताहरइ रे, ऊंणुं नही को काज जेह करी सेवक करइ रे, प्रसन्नमुख महाराज ४ जि० निरंजन निरलेपनें रे, भक्ति सफल जिम थाय द्रव्य पूजा अलगी रहइ रे, जोतां नवि ठहराय ५ जि०