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सप्टेम्बर - २०१८
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दीठो गिरि रलीयामणो तीरथथान अनेक भ० श्रीभावप्रभसूरि कहइ पांमीइ पुण्यइं विवेक १० भ०
दूहा
सुरपति भरतने इम कहइ, पुण्य पवित्र अगराज ए सम कोई नही जगि, सेव्यां सिझइ काज १ कांकरइ कांकरइ एहनें, सिधा साधु अनंत यद्यपि तीरथ स्वरूप छइ, महीधर एह महंत २ तउ पणि ईहां करावीइ, श्री जिनना आवास आगलि पडतो काल छइ, जिम जन धरइ विश्वास ३
ढाल - [३]
निंदरडी वइरणि होइ रही - ए देशी वयण सुणी इम शक्रनां, भरतेसर हो तव दीध आदेश कि वारु वर्द्धकि-रतननइं, करि सुंदर हो तुं चैत्य निवेश कि १ श्री सिद्धाचल सेवीइ, शुभ चित्तई हो जिन ध्यान समाव कि शुद्ध स्वरूप गवेषणा, हुइ अनुभव हो रस योग जमाव कि...श्री० आंकणी। आदि उद्धार ए भरतनो, पुण्य पाईउ हो रोप्यो श्रीकार कि परंपरा दुसम लगइं, भवि तारक हो बहुला उधार कि... २ श्री० वर्द्धकीइं विधिस्युं कर्यो, मणिरतनें हो चउमुख प्रासाद कि त्रैलोक्यविभ्रम जेहनू, नाम जगमइ हो टालइ विखवाद कि... ३ श्री० इकवीस एक एक बारणइ, इम मंडप हो चुरासी मान कि मणि तोरण वरमालिका, गोख जाली हो रूडां विज्ञान कि... ४ श्री० मूल गभारइ चिहुं दिशि, करी मूरति हो रतनमय च्यार कि। स्वामि श्रीऋषभजिणंदनी, मुख दीपइ हो तेजें झलकार कि... ५ श्री० बिहुं पासिं पुंडरीकनी, तिहां कीधी हो मूरति सुविशाल कि निरखंतां नयणां वरइ, हुइ दर्शनइ हो दुरित विशराल कि... ६ श्री० जिन कायोसग्ग मूरति करी, नमि-विनमि हो रह्या खडगने खिच कि सेवा करइ वली प्रारथइ, अह्म दीजीइ हो प्रभु देशने विच कि...७ श्री०