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अनुसन्धान-७५(२)
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अवकर्षक वली इम कहइ, चंदनलता प्रबोध स्याने ताणइ सुंदरी, स्याने करइ तुं क्रोध प्रभु आगलि कोइ उडवइ, चंदन इंधणभार करी पूजा को नवि कहइ, विण पूरण अधिकार २ यद्यपि नैगम नयतणां, भंगतणां सवि ठाम पणि सापेक्षे सत्य छइ, निरपेक्षई नही काम ३ उत्तरकारण ईच्छिइ, तउ सामग्गी सर्व पूजा हुइ प्रभुजीतणी, गोरडी मुंकीइ गर्व ४ टग टग करती टीकडी, चंदननी रहइ छप्प तुं पणि तउ आवी इहां, करी कुहाडइ कप्प ५ तें करी मुझ अवहेलना, ते पणि सांभलि तिम लाकडीइ गिरि भांजस्यइ, तउ जगि रहस्यइ किम ६
ढाल - [७] श्री सीमंधर साहिब सुणीइ भरत खेत्रनी वातो रे - ए देशी धीर गंभीर पुरुषनी वांणी, उच्चारइ सुविशुद्धो रे आदि अंति सुविचारी बोलइ, तेह वखाणइ विबुद्धो रे १
ओरसीउ कहइ इम सुकडिने, सांभलज्यो सह लोको रे टेक निर्गुणनें धणनी उपम, ते पणि जगमें गवाय रे हुं भारीखम किम ते भालूँ, तुं जिम बोली दाये रे २ ओ० उरस् शब्द हृदयनो वाची, तिणि हुं औरसिक कहीइ रे हृदय विहूणां जे जगि ढांढां, ते तुह्म सरिखां लहीइ रे ३ ओ० शैलराजतणा अह्मे बेटा, शैलराज कहाउं रे बाप सरिखा बेटा जगमें, साचुं नाम धराओ रे ___४ ओ० अह्म जेहवो कोई उपगारी, नही जगमांहि जाणो रे कारण विण कोई काम न थाय, ए मनमांहि आणो रे ५ ओ०