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अनुसन्धान-७५(२)
के संचालक श्री विजयचंदजी नाहटा एवं श्री रिषभजी नाहटा को साधुवाद ।
__ हस्तप्रति में छन्दों को ढाल के अनुसार क्रमाङ्क दिये गये है, पर कुछ स्थानों पर छन्दानुसार पंक्ति का सामंजस्य करने हेतु अन्य प्रति में दी गई संख्या के अनुसार छन्द के क्रमाङ्क दिये गये हैं।
'जैन गुर्जर कविओ' में प्रस्तुत कृति का उल्लेख नहीं है । खरतरगच्छ साहित्य कोश में यह कृति क्रमांक ५९३९ पर उल्लिखित है।
नवकारवाली मणीयडा, अट्ठोत्तर सो होइ। पंच परमेष्टि गुणे करी, गूंथी छै गुण जोइ ॥१॥ बारह गुण अरिहंतना, सिद्धां ना गुण आठ । छत्तीस गुण सूरीस ना, पणवीस पाठक पाठ ।।२।। गुण सत्तावीस साधु ना, सरवालै सब जांणि । अट्ठोत्तर सो इम कह्या, विवरौ तास वखाणि ॥३॥
ढाल १
(सेज यात्रा करूं ए एहनी) बैसै सोवन सिहांस ए, छत्रत्रय सिर धार । ए गुण अरिहंतना ए, भवीयण बार उदार ॥ आंकणी ।।
ए गुण अरिहंतना ए० ॥४॥ चामर वींझै देवता ए, ऊपर वृक्ष असोक । देवतणी वागै दुंदुभी ए, नाटक बत्तीस थोक ॥५॥ ए गुण० पुप्फवृष्टि सुरवर रचै ए, भामंडल प्रभु पूठि। अद्भुत रूप अरिहंतनौ ए, विगत मेल नही झूठि ॥६॥ ए गुण० स्वेत रुधिर गोखीरसो ए, सासोस्वास सुगंध । गुण अनंत भगवंतना ए, ए गुण बार प्रबंध ।।७।। ए गुण० सिद्धना गुण अड हिव कहुं ए, ग्यान दर्शन बे अनंत । ए गुण छे सिद्धना ए, भवीयण आठ उदार ।। आंकणी ॥ समकित अनंत अनंत सुखी ए, अनंत वीरज ए अनंत ॥८॥ ए गुण०