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सप्टेम्बर - २०१८
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गौतममाई
सं. - गणि सुयशचन्द्रविजय
मुनि सुजसचन्द्रविजय
माईनो पर्याय थाय छे मातृका अने बावनी एटले ५२ संख्या प्रमाणवाळी रचना। अहीं कविए प्रस्तुत काव्यमां मातृकाक्षरो एटले १६ स्वरो तथा ३६ व्यंजनोने केन्द्रमा राखी १-१ अक्षरोथी पद्य प्रारम्भी ५२ गाथानी रचना करी छे । जो के काव्यनो विषय योग (हठ योग?)नी प्रक्रिया सम्बन्धी होवाथी अथवा अन्य कोई पण मर्यादाने कारणे कविए पण अहीं बधा ज मूळाक्षरोनो प्रयोग कर्यो नथी ।
काव्यनी शरुआतनां १२ पद्योमा कवि ध्याननी अवस्थानुं वर्णन करी तेनी विशेष वातोनी वर्णना त्यारबादनी गाथाओमां करता होय तेम अमने लागे छे. जो के आ विषय योगाभ्यासीओनो छे. साथे अमारी समज बहारनो, तेथी तेवा ज विद्वान बाबत पर पूरतो प्रकाश पाडे ते वधु इच्छनीय छ । पू. उपा. श्रीभुवनचन्द्र म.ना कथन अनुसार रचना गम्भीर होई ते विषयना मर्मज्ञ ज ते समजावी शके।
प्रान्ते सम्पादनार्थे कृतिनी हस्तप्रत नकल आपवा बदल श्री विद्या-दयाजैनानन्द ज्ञानमन्दिर (लुणावाडा)ना व्यवस्थापकोनो तेम ज कृतिनी मेटर जोई आपवा बदल पू. उपा. श्रीभुवनचन्द्र म.नो खूब खूब आभार.
॥६०॥ अथ गौतममाई
आदि प्रणव समरूं सविचार, माया-बीजी त्रिभुवन सार, श्रीमंत भणी जपुं निसि दीस, अरिहंत-पय नितु नामिसु सीस १ गणहर गरुउ गोयमसामि, अखइ निधि हुई जेहनई नामि, नव निधान तिह चौद रयण, जे नितु समरइ गोयम-वयण २ गौतम-वचन अछइ अति सार, माई बावन तणउ विचारु, चऊद पूर्व अंग बावन जाणि, आगम वेदसु स्मृति पुराण ३ अक्षरि अक्षरि आपु विचार, पद पिंड रूविं अछइ अपार, अक्षरि पामइ मुक्ति-संयोग, अक्षरि मनकामित अ(उ)वभोग ४