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सप्टेम्बर २०१८
( ११ )
अजब तमासा देखा संतो, गातें सुहणा पाया है, कीडीने जो कुंजर गलीया, दरिदं गगन डुबाया है; ऊंदरने जो बिल्ली मारी, काल मड़ेने खाया है, 'मींडव आगलि मणिधर नाचइ, सबने छाबई छाया है; आंख छती अपना घर भूला, अंधला अपने जागा है, कपड़े पहिरे पट जा बइठा, राजा ठाढा नागा है; कूप तलइ पाणी वहि ऊपरि, जल मांहि आगि जलावे है, मुख विण आहार करइ मयल का, कर विन ढोल बजावे है, पाय विना परवत पर दोडइ, कंठ विना जो गावे है; दास गोपाल मसी के लोचन, कुंजर को समावे है.
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१. मेडक - देडको । २. आ रचना कोई जैनेतर कविनी जणाय छे.
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