________________
सप्टेम्बर - २०१८
१४७
गणि केसरविजय-कृत तत्त्वत्रिकपूजा (तत्त्वपूजा)
सं. - शी.
क्रियोद्धारक अने संवेगमार्गी गीतार्थ पं. श्रीसत्यविजयजीनी पाटपरम्परामां थयेला मुनि केसरविजय गणिकृत 'तत्त्वपूजा' अत्रे प्रथम वार प्रकाशित थाय छे. पं. सत्यविजय - कपुरविजय - खीमाविजय - जिनविजय - उत्तमविजय - रूपविजय - कीर्तिविजय - जीवविजय - केसरविजय - आम पोतानी परम्परा कर्ताए कलशढाळमां वर्णवी छे. वि.सं. १९२१मां आ पूजा कर्ताए रच्यानो निर्देश पण त्यां ज थयो छे.
३-३ तत्त्वोनी ३ त्रिपुटीने विषय बनावीने आ पूजा रचाई छे. १८-१९मा सैका ए 'पूजा'ना सैका छे. ए गाळामां विविध कवि-साधुओए अनेक पूजाओ बनावी छे, जेमांनी घणी सुप्रसिद्ध छे. केसरविजयजीनी गुरुपरम्परामां तो अनेक कविओ थया छे अने ते बधाए विविध पूजाओ रची छे. ते परम्परामां केसरविजयजी, कदाच, छेल्ला होई शके.
पहेला त्रिकमां देव-गुरु-धर्म ए ३, बीजामां ज्ञान-दर्शन-चारित्र ए ३, त्रीजामां संवर-निर्जरा-मोक्ष ए ३ - एम ९ तत्त्वोनी पूजा बनावी छे. क्रमशः जैन शास्त्रोनी परिभाषानो विनियोग करीने नवेनव तत्त्वो माटे एकेक ढाळ-एकेक पूजा रची छे. पूजा देरासरोमां भणाववा माटे ज रचाई होवानुं स्पष्ट छे, तेथी छेवाडे तेनो विधि पण वर्णव्यो छे.
__पूजा नवसारीमा रहीने रची छे, त्यां 'ओलीमासमां - दीवाळीना पक्षमां' रची होवानो उल्लेख छे ते जोतां कवि नवसारीमां चातुर्मास हशे. त्यां पार्श्वनाथना सांनिध्यनो तथा अधिष्ठायक द्वारा मध्यरात्रे देरासरमां ३ डंका वाग्यानो उल्लेख रोमांचक छे.
पूजामा तत्कालीन बोलचालनी भाषा ज प्रयोजाई छे, जे साव गामठी जणाय. भाषा तथा कल्पनानी कोई विशेषता जणाई नथी. जूनी देशीना ढाळो प्रयोज्या होवा छतां शब्दोनी वधघटने कारणे मात्राओ खास जळवाती नथी, तेथी गानारनी कसोटी थाय तेवी रचना गणाय.
शास्त्रना कठिन विचारो तथा पदार्थो तथा शब्दावली कर्ता ए ए रीते प्रयोज्या छे के जाणे पोते आ विषयनो स्वाध्याय करता होय !