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सप्टेम्बर - २०१८
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केटलीक हरियालीओ
सं. - उपा. भुवनचन्द्र
'हरियाली'ए प्रहेलिकाना एक सुविकसित प्रकाररूपे कविजगतमां स्थान मेळवेलुं - ए तथ्य, हरियालीनी उपलब्ध थती हस्तप्रतो परथी तारवी शकाय छे. उत्तम कक्षाना विद्वान मुनिवरो तथा कविओए हरियाली पर हाथ अजमाव्यो छे. केटलीक हरियालीओ पर बालावबोध रचाया छे. एक ज कविनी रचेली हरियालीओनो संग्रह करेलो होय एवी हस्तप्रतो पण मळे छे.
कोई एक ज वस्तुने विषय बनावी ५-६ के तेथी वधारे कडीओनी हरीयाली रचाय छे. दरेक कडीओमां भिन्न भिन्न प्रश्न होय एवी हरीयाली पण होय छे. कोई कोई हरीयालीमां कडीना प्रत्येक चरणमां नवा नवा प्रश्न गूंथाया होय छे. आवी हरीयाली मोटा भागे तात्त्विक / आध्यात्मिक विषय धरावती जोवा मळे छे.
विविध ह.लि. ग्रन्थोना भण्डारोमांथी अमने सांपडेली थोडीक हरीयालीओ सम्पादित करी अहीं रजू करी छे. अभ्यासी जनोने ते जरूर आनन्द आपशे. ज्यां उकेल नथी मळ्यो त्यां [ ] कौंस खाली राख्यो छे.
सद्गुरु पदपंकज प्रणमीनई, कहिस्युं एक हरियाली; मास पांचनी अवधि विचारी, अरथ कहो संभाली;
रे पंडित, कहीइं अरथ विचारी; वात विचारीनई कहस्य, तास बुद्धि जगि सारी रे,
रे पंडित० १ गुणवंतइं एक नर नीपायो, चरण नंद तस दीसइं; हाली-चाली तेह न जाणइ, सांभलतां मन हींसइ,
रे पंडित० २ महाव्रत संख्या स्वामी सिर परि, बिहुं स्वामी छइं सरिखा; सेव्य-सेवक भेदई करी जूदा, शिवनेत्र पुण्यई निरख्या,
रे पंडित० ३