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सप्टेम्बर - २०१८
रत्नसिंहसूरिशिष्य उदयधर्मरचित उपदेशमाला-सर्वकथानक-षट्पदाः
सं. - गणि सुयशचन्द्रविजय
मुनि सुजसचन्द्रविजय श्रीधर्मदासगणिनी 'उपदेशमाला' ए जैन संघना एक मूल्यवान घरेणारूप ग्रन्थ छे. तेना उपर अनेक विवरणो रचायां छे. केटलांक प्रकाशित पण छे. लगभग अभ्यासु साधु-साध्वी आ प्रकरण कण्ठस्थ करे ज. तेनी गाथाओमां अने शब्दोमां एक प्रेरणा छे - संयमनी, शुद्धिनी, कल्याणनी.
आ ग्रन्थमा प्रतीकात्मक रूपे अनेक कथानकोना संकेत के निर्देश मळे छे. कोई कोई साधुजने आ बधी कथाओ ज संस्कृत विवरणरूपे आलेखी छे. ते विविध कथाओना सम्बन्धित प्रसङ्गोनुं जरा विस्तारथी कथन करवाना आशयथी एक साधुजने 'उपदेशमाला-षट्पद'नी रचना करी छे. षट्पद एटले जे छन्दमा छ चरण के पद होय ते : षट्पद - छप्पय - छप्पो. संस्कृतमा 'षट्पदी', तो भाषामा 'छप्पो'. आपणने तरत ज 'अखा'ना वा 'शामळ भट्ट'ना छप्पा याद आवे. मध्यकालमां आ छन्दप्रकार सारो एवो खेडातो हशे, प्रचलित पण हशे. तो ज एक जैन साधु-कवि प्राकृत गाथाओ पर, तेना अनुवादरूपे के विवेचनरूपे आवा छप्पा रचवा पसंद करे.
छप्पानी भाषा अपभ्रंश-प्रचुर मध्यकालीन गुजराती छे. भाषाना अभ्यासीने आमां घणो मसालो मळी रहे. उपदेशमालानी कुल गाथाओ तो ५४४ जेटली छे. परन्तु ते पैकी जेमां कथानो संकेत आवतो होय ते गाथा पर ज अनुवादात्मक छप्पा रचवाना होई, छप्पानी कुल संख्या ८९ जणाय छे. जो के कथानो निर्देश करती गाथा घणे स्थाने एकेक छे, तो क्यांक ते २ के ३ के ४ गाथामां पण निर्दिष्ट जोवा मळे छे. षट्पद-कर्ताए ते तमाम गाथाओने सांकळीने एक ज छप्पामां ते सघळो अर्थ समावी दीधो छे.
५-६ ठेकाणे, ते ते कथा अगाउ आवी गई होय अने तेने अंगे षट्पद अगाउ के अन्यत्र आपी दीधो होय तो त्यां तेमणे अगाउनी गाथानो अतिदेश आपेल छे के आ विषयनो षट्पद अगाउ । अन्यत्र अमुक गाथामां आपी दीधो छे.
छेल्ला-८९मा षट्पदमां 'रयणसिंहसूरीस-सीस' एवो स्पष्ट उल्लेख छे, अने तेनी पछीनी पंक्तिमां 'उदयधम्म' एवो पण उल्लेख छे. तेथी आ आ.रत्नसिंहसूरिना शिष्य 'उदयधर्म' नामना साधुजननी होय तेम मानी शकाय. कर्ताना समय विषे सन्दर्भो तपासवाना छे. परन्तु १६मा शतकनी हाथपोथी (सम्भवतः) परथी आ प्रतिलिपि अमे