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अंगार- सधूमोवम चरणिधणकरणभावउ जंमि । रत्तो दुट्ठो भुंजइ तं इंगालं च धूमं च ॥ ९५ ॥
अनुसन्धान- ७५ ( २ )
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अंगार० ॥ जे आहार चारित्ररूपीया इंधणहुइ विणासवानूं कारण थाइ, ते अंगारसरीखुं जाणिवउ । अनइ धूमसरीखुंइ जाणिवउं । जे महात्मा सुस्वादसरस आहार रागिइं-मननउ हर्षित हूंतउ जिमइ, ते अंगारसरीखूं जाणिवउं। भोजन तथा जे नी (नि)रस आहार द्वैषिइ करी मननई अगमतई अभावतउ जिमइ, ते भोजन चारित्रहुईं विणास करइ । तेह भणी महात्मा (इ) वर्जिवउं । एतलइ त्रीजइ (इ) चउथउ (४) दोष कहिया ॥९५॥
हिव छ जिमवाना कारण कहियइ छइ -
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छुहवेयण' वेयावच्च' संजम सुहझाण' पाणरक्खट्ठा' । इरिअं च विसोहेउं भुंजइ न य रूव- रसहेडं ॥ ९६ ॥
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छुहवे० ॥ भूखनी वेदना सही न सकइ, तेह भणी जिमइ १ । तथा जिम्या पाखइ भूखिउ महात्मा वेयावच्च करी न सकइं, (तीणइ) कारण जि २ । तथा जिम्या पाखइ चारित्रनी क्रिया पडिलेहण - प्रमार्जनादिक करी न सकइं, तीणई कारणिइ जिमइ ३ । तथा जिम्या पाखइ शुभध्यान- सूत्रार्थ चिंतन-भणनादिक ध्यान करी न सकइं, तीणइं कारणि जिमइ ४ । तथा जिम्या पाखइ प्राणजीवितव्य राखी न सकई ५ । ईर्यासमति सोधी न सकइं, तीणइ कारणिई जिमइ ६ । एहे छए कारणे महात्माए जिमवउं । निष्कारण न जिमवउं । अनइ रूप वधारिवा भणी न जिमइ । तथा शरीरपुष्ट (ष्टि) भणी न जिमइ । तथा आहारनां स्वाद भणी न जिम । इम जिमतां महात्माहुइं प्रमाद निद्रादिक घणा दोष ऊपजई । तेह भणी निष्कारण न जिमवउं ॥ ९६ ॥
हिव छ अणजिमवानां कारण कहइ छइ
अहव न जमिज्झ रोगे' मोहुदए' सयणमाइ उवसग्गे । पाणिदया' तवहेउं अंते तणुमोअणत्थं च ॥९७॥
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अहव० ॥ रोग - ज्वरादिक रोगि छतई न जिमवउं |१| तथा मोहुदए - जिवारइ मोहनउ उदय रागाध्यवसाय गाढउं ऊपनउ जाणीइ तिवारइं महात्माई न जिमवउं । उपवास कीधइ लाभ |२| तथा सयणमाइ - स्वजनादिकनइ उपसग्गि