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अनेकान्त 59/1-2
द्वारा 'कल्याणकारक' ग्रंथ की प्रस्तावना में किया गया है। इस ग्रंथ में अठारह हजार परागरहित पुष्पों से निर्मित रसायन औषधि प्रयोगों के विषय में बतलाया गया है। श्री वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री ने इस ग्रंथ के विषय में निम्न प्रकार से प्रकाश डाला है – “इस पुष्पायुर्वेद ग्रंथ में क्रि. यू. 3रे शतमान की कर्नाटक लिपि उपलब्ध होती है जो बहुत मुश्किल से बांचने में आती है। इतिहास संशोधको के लिए यह एक अपूर्व व उपयोगी विषय है। अठारह हजार जाति के केवल पुष्पों के प्रयोगों का ही जिसमें कथन हो उस ग्रंथ का महत्व कितना होगा यह भी पाठक विचार करें। अभी तक पुष्पायुर्वेद का निर्माण जैनाचार्यों के सिवाय और किसी ने भी नहीं किया है। आयुर्वेद संसार में यह एक अद्भुत चीज है।
श्री समन्तभद्र स्वामी द्वारा रचित उपर्युक्त आयुर्वेद के तीनों ग्रंथों की ओर अभी तक किसी अन्य विद्वान या साहित्यानुरागी का ध्यान नहीं गया है और न ही उनके द्वारा रचित ग्रंथों की सूची में इन का समावेश किया है। कहीं ऐसा न हो कि हमारी उदासीनता श्री समन्तभद्र स्वामी द्वारा रचित इन महत्वपूर्ण ग्रंथों को कालकवलित कर दे।
2. पूज्यपाद (देवनन्दि)
दिगम्बर परम्परा के मनीषियों - आचार्यों में श्री पूज्यपाद स्वामी का नाम अत्यन्त श्रद्धापूर्वक लिया जाता है। दर्शन शास्त्र, तर्क विद्या, व्याकरण, वैद्यक शास्त्र, योगशास्त्र के प्रणेता के रूप में विश्रुत आचार्य श्री पूज्यपाद स्वामी जैन वाड्.मय और जिन धर्म के नभो मण्डल के देदीप्यमान नक्षत्र हैं। विभिन्न जैन शास्त्रों एवं इतिहास ग्रंथों में उनके वैदूष्य के विषय में पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। यहां केवल उनके द्वारा आयुर्वेद के प्रति किए गए योगदान पर प्रकाश डाला जा रहा है -
प्राप्त विवरण या सूचना के अनुसार श्री पूज्यपाद स्वामी ने 'कल्याण कारक' नामक वैद्यक ग्रंथ का निर्माण किया था जिसकी पुष्टि कन्नड़