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अनेकान्त 59 / 1-2
किए जाने का उल्लेख या संदर्भ प्राप्त होता है उनका और उनके योगदान का संक्षिप्त वर्णन यहां प्रस्तुत है |
श्री समन्तभद्र 'प्राणावाय' पूर्व की परम्परा में श्री समन्तभद्र स्वामी का नाम अग्रणी है, क्योंकि उनसे पूर्व किसी अन्य मुनि या आचार्य का उल्लेख प्राप्त नहीं होता है जिसने प्राणावाय परम्परा के किसी ग्रंथ की रचना की हो । विभिन्न विद्वानों ने श्री समन्तभद्र स्वामी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर पर्याप्त प्रकाश डाला है, अतः यहां पर केवल उनकी प्राणावाय या आयुर्वेद सम्बन्धी कृतियों - ग्रंथों पर प्रकाश डाला जा रहा है । प्राणावाय सम्बन्धी निम्न तीन ग्रंथों की रचना उनके द्वारा किए जाने का संकेत या संदर्भ प्राप्त होता है
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1. अष्टांग संग्रह आयुर्वेद के आठ अंगों (शल्य तंत्र, शालाक्य तंत्र, काय चिकित्सा, भूत विद्या, अगदतंत्र, कौमारभृत्य, रसायन तंत्र और बाजीकरण) का विस्तार पूर्वक निरूपण करने वालायह एक सर्वांग पूर्ण ग्रंथ था जिसके आधार पर जिनमत का अनुसरण करते हुए श्री उग्रादित्याचार्य ने अपने 'कल्याण कारक' ग्रंथ की रचना की थी। इस आशय का कथन स्वयं श्री उग्रादित्याचार्य ने अपने कल्याण कारक ग्रंथ मे किया है जो पूर्व में उद्धृत किया जा चुका है ।
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2. सिद्धान्त रसायन कल्प इस ग्रंथ का उल्लेख श्री वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री (सोलापुर) ने कल्याणकारक ग्रंथ की प्रस्तावना में किया है । इस ग्रंथ के कुछ श्लोक भी उन्होंने उद्धृत कर ग्रंथ के महत्व को रेखांकित किया है। इससे स्पष्ट है कि इस ग्रंथ का अवलोकन उन्होंने स्वयं किया था । किन्तु यह अज्ञात है कि यह ग्रंथ उन्होंने कहां और किसके पास देखा है? अतः इस विषय में यदि गम्भीरता पूर्वक अन्वेषण किया जाय तो एतद्विषयक महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हो सकती है । इस ग्रंथ के वैशिष्ट्य के विषय में कल्याणकारक ग्रंथ की प्रस्तावना देखें ।
3. पुष्पायुर्वेद - इसका उल्लेख भी श्री वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री